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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषिमंडल - स्तोत्र ॥ ( ९ ) आह्वाहन ॥ ॐ इन्द्राग्नि दंहधर नैऋत्य पाशपाणी वायुतर शशिसुशील कणीन्द्रचन्द्राआगत्य पयमिहसानुचरा सचिह्नाः पूजाविधौ ममसदेव पुराभवन्तु ॥ इस मंत्र द्वारा दशदिग्पालका आह्वाहन करना चाहिए । ॐ आदित्य सोम मंगल बुध गुरु शुक्रा शनैश्वरौ राहु केतु प्रमुखाः खेटा जिनपतिपुरतोवतिष्टन्तु स्वाहाः ॥ इस मंत्र द्वारा नवग्रहका आह्वाहन करना चाहिए । For Private and Personal Use Only पुनश्च ( पुनख ) भूतबली मंत्रेण धूपंधूपनियं ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं नमो आकाशगामिणं, ॐ ह्रीं चारणाई लद्धीणं जेइमेकिन्नर किं पुरिस महोरग जखरख सपिसाय भूयसाईणीमाईणीप्पभइओ जे जिणघरनिवासिणो नियरनिलग्यिाष्पवि आरणो सन्निहिया असन्निहिया तेईमे विलेवण धूप पुप्फ फलप्पईथयमिच्छंता तुठिकरा भवन्तु पुठिकराभवन्तु सिवंकराभवन्तु संतिकराभवन्तु सव्वच्छ रखं कुणंतु सव्वच्छा दुरिआणिनासंतु सव्वासिवमुवसंमंतु सव्वमुच्छयणंकारिणो भवन्तु स्वाहाः ।। अस्य मंत्रस्यार्थ हृदि वि चिन्त्य धूपौ क्षेपणं कार्य इति, भूतवलीमंत्रोयं तदनुपुजा विधि प्रारम्भकाले तथा यदा ज‍ होमचारभेत् तदा अन्तरमनसं एवंवदेत् ॥
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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