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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ ऋषि मंडल - स्तोत्र जाप किया करे तो अपूर्व आनन्दका अनुभव होता है, और जापकी दूसरी विधियोंसे हजार गुणा मानस जाप श्रेष्ट माना गया है । जिसके प्रतापसे वासना क्षय होती है और शान्ति तुष्टि पुष्टि व मोक्ष पद पाते हैं । (२) दुसरा उपांशु जाप उसे कहते हैं कि दूसरा कोई पुरुष पासमें बैठा हो वह तो सुने नही लेकिन अन्तर जल्प रुप कण्ठ द्वारा या मुँह मेही जाप करता रहे। अर्थात् होठ हिलते नजर आयें लेकिन जाप मुँह मेही होता रहे, और पासमें बैठे हुवे पुरुष उच्चार को न समझ सकें। एसे जाप भी सिद्धि दाता होते हैं, और मन वश में रहता है, संसार वासनासे मूर्च्छा आती है । तप तेज बढता है, और नेत्रोंको कुछ खुले हुवे कुछ बंध सामने के आलम्बन पर स्थिरता पूर्वक रखने से एसा जोश आता है कि जिसके प्रभावसे किसी तरहका वेन - नशा आया हो और मस्त होकर बैठे हों एसा अनुभव होता है, इस तरह होते होते स्थूलसे सूक्ष्ममें प्रवेश हो जाता है, और स्थिरता आ जाती है अतः इस जापका अभ्यास करना चाहिए । तीसरा भाष्य जाप बताया गया है, जिसका बयान करते कहा कि जाप करते समय पासमें जो पुरुष हों वहभी स्पष्ट सुन सके और लय लगाता हुवा शुद्धता पूर्वक जाप करता रहे तो एसे जापसे वाक्शुद्धि होती है और आकर्षण For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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