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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषि मंडल ध्यान विधि वस्त्र, और उपकरण शुद्धिकी तरफ विशेषध्यान रखना चाहिए, क्योंकि पवित्रतासे चित्त प्रसन्न रहता है, और साधना सिद्ध होती है। जो पुरुष हृदयको पवित्र किये बिना ध्यान करते हैं उनको सिद्धि प्राप्त नहीं होती। एक मामूली बात है कि राजा महाराजाको अपने गृह निवासमें आमंत्रित करते हैं तो निवास स्थानको किस तरहका पवित्र व सुन्दर-स्वच्छ बनाकर सजाया जाता है और शोभा बढाने में लक्ष दिया जाता है जिसका वृत्तान्त पाठक जानते होंगे । सोचने जैसी वात है कि राजा महाराजाकी पधरामणीमे इतने दरजे लक्ष देते हैं तो त्रिलोकीनाथको हृदयमें प्रवेश करते समय हृदयअन्तःकरण कितना निर्मल बनाना चाहिए जिसकी कल्पना पाठक स्वयं कर सकते हैं। ____ जाप करनेके तरीके तीन प्रकारके बताये गये हैं जिसका वर्णन “निर्वाण कलिका" नामके ग्रन्थमें श्रीमान् पादलिसाचार्यजी महाराजने किया है, और बताया है कि पहला जाप मानस, दूसरा जाप उपांशु और तीसरा जाप भाष्य है, इन तीन प्रकारके जापका खुलासा इस प्रकार है । (१) मानस जाप उसको कहते हैं कि मनही में मग्रता पुर्वक स्थिर चित्तसे एकाग्रता सहित लय लगाता हुवा ध्यान करता रहे। इस जापको मंत्र साधना का प्राण रुप माना गया है, इस लिये उच्चार रहित नेत्रोंको बंध कर मनही में For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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