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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषि मंडल यंत्र में पदस्थ ध्येय स्वरूप इस तरह की तन्मयता होजाने बाद अरागी, अद्वेषी, अमोही, सर्वदर्शी, और देवगण आदि से पूजनीय एसे सच्चिदानन्द परमात्मा समवसरण में धर्मोपदेश करते हों एसी अवस्थाका चितवन करना चाहिये, जिससे ध्यानी पुरुष कर्मरहित होकर परमात्मपद पाता है । For Private and Personal Use Only ४७ महापुरुष, ध्यानी योगी जो इस विषय का विशेष अभ्यास करना चाहते हों वह मंत्राधिप के उपर व नीचे रेफ सहित कला और बिन्दु से दबाया हुवा - अनाहत सहित सुवर्ण कमल के मध्य में बिराजित गाढ चंद्र किरणों जैसा निर्मल आकाश से सञ्चरता हुवा दिशाओं को व्याप्त करता हो इस प्रकार चितवन करना, और मुखकमल में प्रवेश करता हुवा भ्रकुटी में भ्रमण करता हुवा, नेत्रपत्तों में स्फुरायमान भाल मंडल में स्थिररूप निवास करता हुवा तालू के छिद्रमें से अमृत रस झरता हो, चन्द्र के साथ स्पर्धा करता हो, ज्योतिष मंडल में स्फुरायमान आकाश मंडल में सञ्चार करता हुवा मोक्ष लक्ष्मी के साथ में सम्मलित सर्व अवयवादि से पूर्ण मंत्राधिराज को कुम्भक से चिंतवन करे। जिसका विशेष स्पष्टीकरण करते हुवे कहा है कि " अ " जिसकी आद्य में है और "ह" जिस के अन्त में है व बिन्दुसहित रेफ जिसके मध्य में लगा हैं एसा पद "अ" परम तत्व है, और इसको जो जानते वही तत्त्वज्ञ हैं-तत्त्वज्ञानी हैं ।
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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