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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ ऋषि मंडल-स्तोत्र - वानकी स्थापना अर्धचन्द्राकार जो नादकला है उसमें करना चाहिये । बिन्दुके मध्यमें तीर्थकर नेमिनाथ और मुनिसुव्रत स्वामीकी स्थापना करना। पद्मप्रभवासुपुज्यौ, कलापदमधिष्ठतौ॥ शिरईस्थितिसंलीनौ, पार्श्वमल्लिजिनोत्तमौ॥ २५ ॥ भावार्थ-पद्मप्रभु और वासुपुज्य स्वामीको मस्तक अर्थात् कलाके स्थानमें स्थापित करना । पाश्र्वनाथ व मल्लिनाथ भगवानको “ई” कारमं स्थापित करना । शेषास्तीर्थकृतः सर्वे,-हरस्थाने-नियोजिताः॥ मायाबीजाक्षर प्राप्ताश्चतुर्विशतिरर्हतां ॥२६॥ ___भावार्थ-शेष सोलह तीर्थकर भगवानको रकार हकार के जो वर्ण हैं, उनके मध्यभागमें लिखे । इस तरह चौबीस जिनदेव माया बीज जो "ही" कार हैं उसमे स्थापित करे। गतरागद्वेषमोहाः, सर्वपापविवर्जिताः ॥ सर्वदा सर्वकालेषु, ते भवन्तु जिनोत्तमाः ॥२७॥ भावार्थ-चौवीसों जिन भगवान रागद्वेष और मोहसे रहित हैं, सर्व प्रकारके पापोंसे वंचित हैं एसे जिन भगवान सर्वदा सर्व कालमें प्राप्त होवें । For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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