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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषि मंडल - स्तोत्र - भावार्थ २५ अस्मिन बीजे स्थिताः सर्वे, ऋषभाचा जिनोत्तमाः । वर्णैर्निजैर्निजैयुक्ता ध्यातव्यास्तत्र संगताः ||२१|| भावार्थ — इस तरह के "हाँ" बीजा अक्षरमें ऋषभदेव आदि चौबीसही तीर्थकर बिराजे हुवे हैं जो जिस वर्ण में बिराजित हैं उस वर्णके अनुसार ध्यान करना चाहिये । नादश्चन्द्रसमाकारो, बिन्दुर्नीलसमप्रभः ॥ कलारुणसमासान्तः, स्वर्णाभः सर्वतोमुखः ||२२|| शिरःसंलीन ईकारो, विलीनो वर्णतः स्मृतः ॥ वर्णानुसारसंलीनं, तीर्थकृत्मंडलं स्तुमः ॥ २३ ॥ युग्मम् । भावार्थ — इस बीज अक्षरकी नादकला अर्धचन्द्राकार है, और वह श्वेतवर्णकी होती है, उसमें जो बिन्दु होता है उसका रंग काला है । मस्तककी कला लाल रंगकी होती और " ह" कार पीले वर्णवाला है, “ ई " कार नीले वर्ण वाला है, इस तरहके " ही " में चौबीस तीर्थकरों की रंगके अनुसार स्थापनाकी गई है । चन्द्रप्रभोपुष्पदन्तौ, नादस्थितिसमाश्रितौ ॥ बिन्दुमध्यगतौ नेमिसुव्रतौ निसत्तमौ ॥ २४ ॥ भावार्थ - चन्द्रप्रभु और पुष्पदंत इन दोनो तीर्थकर भग 44 For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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