SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ स्तोत्र-मंत्र-महिमाभावार्थतामसी वृत्तिवाला है, ज्ञानवान तेजवान जिस तरह पूनमके चादसे रात्री शोभायमान दीखती है. तदनुसार तेजस्वी अज्ञान-अंधकारका नाश करनेवाला आनन्दकारी जिनबिंब है। साकारं च निराकारं, सरसं विरसं परं ॥ परापरं परातीतं,-परम्पर परापरं ॥१६॥ भावार्थ-अर्हत् भगवानका बिंब होनेसे साकार है। अर्हत् सिद्धपद पा चुके हैं इस लिये मोक्षकी अपेक्षा निराकारभी है । सम्यग् ज्ञानदर्शनसे परिपूर्ण रसमय हैं, किन्तु रागद्वेषादि रसोंसे रहित हैं, और उत्कृष्ट है । एकवर्णं द्विवर्णं च, त्रिवर्णं तुर्यवर्णकं, ॥ पञ्चवर्णं महावर्णं, सपरं च परापरं ॥१७॥ भावार्थ-वह एक वर्ण दोवर्ण, तीनवर्ण चारवर्ण और पांचवर्ण वाला अर्थात् श्वेत, लाल, पीला, नीला, और श्यामवर्णवाला है। ह्रीं बीजाक्षर पांचवर्णवाला है और हकार भी अति श्रेष्ट है। सकलं निष्कलं तुष्टं, निभृतं भ्रांतिवर्जितं॥ निरञ्जनं निराकारं, निर्लेपं वीतसंश्रयं, ॥१८॥ भावार्थ-अर्हत् भगवानकी अपेक्षा स-कल अर्थात् शरीर सहित साकार है। निष्कल-अर्थात् सिद्धभगवानकी For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy