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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - २२ ऋषि मंडल भावार्थ-उसके मध्यभाग में मेरु पर्वत है और वह कयैक कूटों से शोभायमान हो रहा है, उस मेरुपर्वत के ज्योतिष चन्द्र परिक्रमा देते हैं जिससे और भी शोभायमान है । तस्योपरि सकारांतं,-बीजमध्यास्य सर्वगं ॥ नमामि बिंबमार्फत्यं, ललाटस्थं निरंजनं ॥१३॥ भावार्थ-मेरु पर्वत के उपर सकारांत बीज अक्षर ही की स्थापना करे, और उसमें सर्वज्ञ भगवान जिन्होंने कर्मों को नाश कर दिये हैं, एसे अर्हत् भगवान को ललाट में स्थापित करके वन्दन नमन कर ध्यान करे। अक्षयं निर्मलं शांतं, बहुलं जाड्यतोज्झितं ॥ निरीहं निरहङ्कारं, सारं सारतरं घनं ॥ १४ ॥ भावार्थ-अर्हत् भगवानका बिंब अक्षय, अर्थात् कर्ममलसे रहित-निर्मल-शान्तताके विस्तारवाला अज्ञानसे रहित है और जिसमें किसी तरहका अहंकार नही है, एसा श्रेष्ठ-अत्यन्त श्रेष्ट बिंब है। अनुद्धतं शुभं स्फीतं-सात्विकं-राजसं-मतं॥ तामसं चिरसंबुद्धं,-तैजसं शर्वरीसमं ॥१५॥ ___ भावार्थ-उद्धताई हठवाद से रहित है, शुभ-स्वच्छएवंस्फटिक जैसा निर्मल है। चौदहराज लोकके मालिक होनेसे राजस गुण वाला है। आठों कर्ममलका नाश करनेमें For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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