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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपिल ( ४० ) करकस उदा० कंचन रचित कोट, फटिक कपाट मुख, । गहीर छबि हीरन जटित तट पास-पास । सीतल सघन देव द्रुम वन को विकास । -देव कमलाप्रजा-संज्ञा, स्त्री० [सं० कमल+अग्रजा] कपिल-संज्ञा, पु० [स०] १. चूहा २. अनि लचमी की बड़ी बहन, दरिद्रा । ३. शंकर । उदा० कमला ज्याँ थिर न रहति कहूँ एक छिन उदा० १. नाग जाके द्वादस विशेष कर जपनीय. कमलाग्रजा ज्यां कमलनि तें डरति हैं। सुमुख और दंत एक, कपिल विराज है । -केशव -वाल कमेरा-संज्ञा, पु० [हिं० काम+एरा] (प्रत्य॰) कपूर धरि--संज्ञा, पु० [हिं० कपूर धर 1 एक | दास, सेवक, नौकर, मजदूर । प्रकार का बढ़िया वस्त्र जो तिब्बत में बूना उदा० जिनको तू मानत है मेरे ए कमेरे तौ, . जाता है, अकबर ने इसका नाम कपूर नूर रखा साथी नाहि तेरे जिन भ्रमै जग छल में। था । -सूरति मिश्र उदा० बानी की कपूर धूरि ओढ़नी सी फहराति बात-बस प्रावति कपूर-धूरि फैली सी। करक-संज्ञा, पु० [स०] १. कचनार नाम का पुष्प २. दाड़िम । -दास छबि रही भरपूरि, पहिरे कपूर धूरि, | उदा० १ ब्रजतिय पूरित प्रेम अखंडित कुंडल नागरी अमर मूरि मदन दरद की। श्रवण करक मनि मंडित । -सोमनाथ -सेनापति करकना--क्रि० प्र० [हिं० कड़कना] १. कड़कपूर मनि-सं० स्त्री० [कपूरमणि] तृणमणि कना, डाँटना, दपेटना, गरजना, तड़पना २. जो तृण को आकर्षित करती है। सालना, कसक से भरे रहना । उदा०ह कपूर मनिमय रही मिलि तन-दुति | उदा. १. एक संग द्रोन द्रोनी भीषम प्रवीन बेनी. मुकतालि। करन दुसासन कुलाहल के करके। कफनी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० कफन] गुदड़ी, फटा –बेनी प्रवीन पुराना वस्त्र २. साधुओं की मेखला । २. द्विजदेव लखें मन संतनहूँ के, अनंत कुढ़े उदा० मलय विभूति श्याम कंबूकी सो रघुनाथ करकेई रहैं। -द्विजदेव करकर-संज्ञा, स्त्री० [अनु०] कड़क, हक । फटी कफनी के गजखाल गरे घाले हैं। उदा० किरच कपूर कर कोरें बीरी भरि हरि, -रघुनाथ कर बीरी देत करकर उठी रस ही। कवि-संज्ञा, पु० [सं० कवि ] शुक्राचार्य, शुक्र -आलम नक्षत्र । करकानि-सज्ञा, पु० [स० करक] १. मौलश्रो उदा. जोति बढ़ावत दसा उतारि। मानो स्या २. कचनार । मल सींक पसारि। कबि हित जनु रबि उदा० कुमुद कलानिधि कपूर करकानि कुन्द, रथ तें छोरि । स्याम पाट की डारी कास के बिलास हास सदर 'जुन्हाई है। डोरि । -हफीजुल्लाखाँ के हजारा से -केशव करंज-सज्ञा, पु० [स० कलिंग, फा० कुलंग] कमण्डली--संज्ञा, पु० [स०] १. साधु, सन्यासी मुर्गा । २. पाखण्डी । उदा० पाढे पीलखाने प्रो करंजखाने कीस हैं । उदा० १. कुंडलीस, चंडीस, कमण्डली सहित मुनि -भूषण मण्डली विमोही, रास मण्डली विलोकि करकस-क्रि० वि० [सं० कर्कश] कठिनाई से, कै। -देव दुखों, से कठोरता से। कमलाकर-संज्ञा, पु० [ स ० ] १. सरोवर, | उदा० आयौ तू कहाँ ते उपजायौ कौन कौन तालाब २. कमलों का पाकर । बिधि, पालि के बढ़ायौ कहो, कौन करकस उदा० १. अन्तर सुधाजल विमल कमलाकर, -वाल For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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