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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गंग उद्दित उबठना उहित-वि० [सं० उद्यत] उद्यत, प्रस्तुत, तैयार खाइये, सिंधु सोइ है जहाँ जल खाइये । उदा० रहयो द्यौस जब व घरी, साजि सकल -रघुनाथ सिंगार । उद्दित व अभिसार को, बैठी उपविक्रि० वि० [बुं०] पसन्गीस, अपनी मर्जी से परम उदार। ___- देव । उपदि बरयो है यहि सोभा अभिरत हो । उनदोही--वि० सं० उन्निद्र] उनीदीं निद्रा ग्रस्त -केशवदास उदा० पारयो सोरु सुहाग को इनु बिनु ही पिय उपधि-क्रि० वि० [बुं०] धोखे से, छल से । नेह । उनदौंही अँखियाँ ककै, के अलसौंहीं उदा० किधौं यह राज पुत्री बरही बरी है किधौं देह । - बिहारी उदधि बरयो है यह सोभा अभिरत है। उनमाथना- क्रि० स० [सं० उन्मथन] मथना, -केशव विलोड़ना। उपनये---वि० [देश॰] नंगा, बिना जुता के । उदा० जल तें सुथल पर थल तें सुजल पर उथल उदा० जिन दौरियो उपनये पावन हरुबाइल के पुथल जल, थल उनमाथी को । पाछे । . -बक्सी हसराज - बेनी उपसीजना-क्रि० प्र० [सं० उपयेज] अधीन उनमानना - क्रि० अ० [सं० अनुमान] अनुमान होना, वश में होना । करना, संभावना करना। उदा० आज कहूँ उपसीजि न जाहुगी, जोन्ह तें उदा० (क) तनु कंबु कंठ त्रिरेख राजति रज्जु सी जीति हौ मेरी गोसाइन । उनमानिये, . -केशव उपाना- क्रि० स० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न करना (ख) राजा राइ राने उमराइ उनमाने, उनमाने निज गुन के गरब गिरबीदे हैं । पैदा करना । उदा० ही मनते विधि पुत्र उपायो। जीव उधारन -देव मन्त्र बतायो। - केशव उनरना-क्रि० प्र० [ सं० उन्नरग-ऊपर जाना] १. उठना, उमड़ना २. कूदना, उछलना, उपावन-संज्ञा, पु० [सं० उपाय] रक्षण, रक्षा उदा० जब एक समै प्रभु भावन बावन, सन्त । कूदते हुए चलना। उपावन देह धरी। उदा० २. मेरो कहयो किन मानती मानिन, -गंग प्रापुही तें उतको उनिरोगी। उपाहन-संज्ञा, पु० [सं०] जूता, पदत्राण । -देव उदा० धोती फटी सी टी दुपटी अरु पाय उपाहन उनाना-क्रि० स० [सं० उन्नमन] लगाना, प्रवृत की नहिं सामा । -नरोत्तमदास करना २. भरना, रंजित करना । उपैजाना-क्रि० प्र० [देश॰] उड़जाना । उदा० एकनि भेटि दुहुँ भुज देव हियो ग अंजन उदा० देखत बुरै कपूर ज्यौं उप जाइ जिन, बाल । रंग उनैक। ---देव -बिहारी उनाव-संज्ञा, पु० [सं० उन्नमन] उत्तेजना, उफाल-संज्ञा, पु० [देश॰] बड़ी लम्बी डग, जोश । छलांग मारते समय की डग । उदा० बनावै उनावै सुनावै कर रक्खे । रबाब उदा० जल जाल काल कराल-माल-उफाल पार बजावै सु गावै हरक्खे । -पद्माकर धरा धरी । -केशव उपंगी-संज्ञा, पृ० [१] नसतरंग नामक वाद्य उबटना-क्रि० अ० [हिं० उचटना] चित्त से उदा० पगि पगि पुनिपुनि खिन खिन सुनि सुनि उतर जाना, अरुचि होना, उदासीन होना। मृद मृद ताल मृदंगी मृहचंगी झांझ उदा० देखि कहाँ रहे धोखे परे उबटौगे ज देखौ उपंगी। -दास ब देखहु प्रागे । - केशव उपखान-संज्ञा, पु० [सं० उपाख्यन] १. कहावत उबठना-क्रि०अ० [सं० उद्व जन] अरुचि उत्पन्न २. पुरानी कथा। होना, उदासीन होना । उदा० है जग में उपरवान प्रसिद्ध सुनो रघुनाथ, उदा० अलंकार सो सार है उबिठै सुनत न वर्ष । की सौंह सुनाइयो । वृक्ष सोई है जहाँ फल -रघुनाथ For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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