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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उझलि ( २५ ) उदोत बात, हिलकी मैं सोम झिलमिल की । उदा० पातकी पतित अति प्रातूर उतार तारे उझलि पर । -ग्वाल पातुर पिसाच काम-कातर करन ये । उझलि-संज्ञा, स्त्री० [सं० उल्झरण, प्रा० प्रोज्झरो], निर्भर , उमड़ाव, बाढ़, प्रवाह, उतू--- संज्ञा, पु० [? ] कपड़े आदि में बेल-बूटे बहाव, एकत्र होना २. ऊपर की ओर उठना, बनाने का एक औजार । उदा० रूप की उझलि अछि प्रानन पै नई नई उदा० चोली चुनावट चीन्हें चुभे चपि होत उजातैसी तरुनई तेह-प्रोपी अरुनई है। गर दाग उतू के। --घनानन्द -घनानन्द उत्तपनि-संज्ञा, पु० [सं० उत्ताप ] १. उत्ताप, झेलो वियोग के ये उझिला निकसे जिनरे ज्वाला, गर्मी, तपन । २. कष्ट । जिमरा जिरा । -ठाकुर उदा० १. उत्तपनि-रत रितुपति में तपति अति, उझेल-संज्ञा, पु० [हिं० उझलना] ढालने की निसिपति-कर उर ताप सी गहति है। क्रिया, उड़ेलने का कार्य । -आलम उदा० अमल अमेल में, कै प्यालिन उझेल में, उथपना--क्रि० स० [सं० उत्थापन] नष्ट करना, के रहे कि झेल में, के झूलों की झमेल में। उजाड़ना, उखाड़ना । --ग्वाल उदा० माथे मोर पंखा धरे स्यामरो सों रघुनाथ उटकना-क्रि० स० [सं० उत्कलन] अटकल बड़ी बड़ी आँखि करै कोल को उथपनो। लगाना, थाह लगाना, अनुमान करना । -- रघुनाथ उदा० छलबल दलबल बुद्धि बिधान । कवि आलम थान थपे उथपे की रहै बलू के उटक्यो प्रबदुल्लहखान । -केशव के नर बैन रचें। - पालम उटक्कर-वि० [? ] अंधाधुंध, बहुत अधिक । उदंगल-वि० [सं उद्दण्ड] उद्दण्ड, धूष्ट ।। उदा० सीसन की टक्कर लेत उटक्कर घालत उदा० जंगल के बल से उदंगल प्रबल लूटा महमद छक्कर लरि लपटें । -पद्माकर अमी खां का कटक खजाना है। उटना-क्रि० प्र० [हिं० ओट ] प्रोट में हो -भूषण जाना, छिप जाना । उदग्ग-वि० [सं० उदग्र] प्रचण्ड । उदा० भजि चले एकै देखि ऋद्धित कुँवर को इत उदा० तिनके सिरन पै अति उदग्ग सूखग्ग नप उत उटै । -पद्माकर घालत भये । -पदमाकर उठेल-संज्ञा, स्त्री० [ हि० ठेल ] ठेल, धक्का, उदबस-वि० [सं० उद्वासन] उजाड़, सूना । । चोट । उदा० मन न लगत उदबस लगै प्रान सो उदा० अरिबर सिलाही बहु गिराये सक्ति को जु --- आलम उटेल मों। -पद्माकर उदारिज-संज्ञा, स्री० [सं प्रौदार्य], औदार्य, उतमंग-संज्ञा, पु० [सं० उत्तमाङ्ग] सर, उदारता । मस्तक । उदा० चारि उदारिज आदि दै सोभादिक त्रय उदा० (क) बन्दक शिवा के चोली बन्द कसि वाके जानि । । दास गुहे मोती उतमंग के उमा के उत मंग उदेत-वि० [सं० उदय] उदित, निकलना के । -देव उदा० नगर निकेत रेत खेत सब सेत-सेत. ससि (ख) सोहति उतंग उतमंग ससि संग गंग। के उदेत कछु देत न दिखाई है। - देव --सेनापति उदोत-- संज्ञा, पु० [सं० उद्योत] चाँदनी,ज्योत्स्ना उतल्ल-वि० [हिं० उतावला] उतावला । प्रकाश। उदा० संकरषन फुकरै, काल हुँकरै उतल्ल । उदा० इंदु के उदोत तें उकीरी ही सी काढ़ी, सब -- चन्द्रशेखर सारस सरस, शोभा सार तें निकारी सी। उतार-वि० [देश॰] उपेक्षित, तुच्छ, निकृष्ट । . केशव For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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