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असुरंगा
अहोमनि लसाइ कै मिलाइ लीन्हों असु है।
अहटाना-क्रि० प्र० [हिं० पाहट] आहट मिलना -रघुनाथ
पता चलना।
उदा० और ठौर कहूँ टोहेहू न अहटाति है। असुरंगा–संज्ञा, पु० [सं० असुर], असुर राक्षस,
-आलम यमराज । उदा० ताही को सुजस लोक लोकनि के अोकनि में, अहिताई-संज्ञा, स्री, [सं० अहि] सर्प का गुण, सोकनि के थोकनि कौ देत असुरंगा है।
सर्पवत् ब्यवहार, कुटिलता। -सूरति मिश्र उदा० क्यों अहिताई गहो हमसे कवितोष रहै कहुँ मान मिताई ।
-तोष असली-वि० [सं० अ+ शैली] कुढंगी, अनुचित कुमार्गी ।
अहूं-संज्ञा, पु० [सं० अहंकार] अहंकार, गर्व उदा० हैली हिम रितुह में निरखि असैली रीति, घमंड। फैली अंग अंगनि में गरमी लवंग की ।
मानु तजौरी पुकारि पिकी कहै, जोबन -सोमनाथ की करिबे न अहूँ है ।
-देव असोस-वि० [सं० अशोष्य] न सूखने योग्य । अहूँवना-क्रि० स० [हिं० अहुटाना?] हटाना उदा० गोपिन के असु वनि भरी सदा असोस अपार भगाना, दूरकरना । डगर डगर ने ह रही बगर बगर के बार।
उदा० भौरनि अहूँ दें जग सुन्दरता रुदै मनौं, -बिहारी
मकरंद बूंदै अरबिन्द पै तें बरसैं । असौज-वि० [हिं० प्रसुझ] अंधेरा, अँधकारमय
-सोमनाथ २. कठिन, विकट ।
प्रह-संज्ञा, पु० [फा० पाह] मृग । उदा० सुनि उद्धव श्री व्रज राज बिना हमकी सू
उदा० अह हरिनन में मिलत अद्धद्धसत सु अद्ध । असौज असौजत है।
-पद्माकर -सूरति मिश्र
अहूख-वि० [?] अरुचिकर फीका, दुखद, पीड़ा असौजना-क्रि० स० [हिं० असूझना] आर-पार
उत्पन्न करने वाला । दिखाई न पड़ना, अँधकार मय प्रतीत होना । उदा० सुनि उद्धव श्री ब्रजराज बिना हमकौं सु
उदा० ऊख पियूख मयूखनि हूखनि, लाग अहूख असौज असौजत है।
-सूरति मिश्र
लखै सुर रुखै। असौंध-संज्ञा पु०[ हिं० सुगंध] दुर्गंध, बदबू ।
अहूत-वि० [सं० आहूत निमंत्रित, बुलाये गये,
आमंत्रित । उदा० अँह पागम पौनहि को सुनिये । नित हानि असौंधहि को गुनिये।
उदा० पाई मन भाई सो अकेली बन कुंजन में, -केशव प्राइ गये लाल मानौ मदन अहूत री।
-बेनी प्रवीन अस्फी-संज्ञा, पु० [फा० अस्प+ई] घुड़सवार, अश्वारोही।
अहल-वि० [सं० अ+ शूल] १ शूल रहित, उदा० सु प्रस्फी घने दुंदुभी हैं धुकारे।
पीड़ा रहित, आनन्दमय, सुखद २. अनिंद्य । -पद्माकर
उदा० १. कूल है नदी को प्रतिकूल है गुमान री, प्रहकना-क्रि० प्र० [हिं० प्रहक. सं० ईहा]
अहू लहै सु तौन जौन जीवन अहूल है । प्रबल कामना या इच्छा करना, लालायित होना, लालसा करना ।
अहोमनि—संज्ञा, पु० [सं० अहोमणि] सूर्य, दिनउदा० लीन्हीं सुधि नाहिं अजौं कोर करुना की
मणि । चितै, कितै रहें बितै दिन, गोपी गिन | उदा० केतिक और अहोमनि होति, जहाँ छवि अहकी। -हफीजुल्ला खां के हजरा से
कोटि अहोमनि की हत ।
-देव
-देव
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