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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फदैती फरमार फैदेती-संज्ञा, पू० [हि० फंदा = जाल+ऐती फर फरं के फतहन फबै रहैं ।। (प्रस०)] फंदा डालने वाला, जाल में फंसाने बाला, -- पद्माकर ब्याध, शिकारी। फते-संज्ञा, पू० [फा० फतहबाज] १. फतह उदा० मनमोहन ऐसो मिलावत हैं जो फंदे तो बाज, एक प्रकार का बड़ा बाज २. विजय कुरंग फंदैती करें। -बोधा [फा० फतह] । फटक-संज्ञा, पु. [सं० स्फटिक] १. स्फटिक, उदा० २. बाहुबली जयसाहिजू फते तिहारै हाथ बिलौर २. तत्क्षण, झट (क्रि. वि.)। -बिहारी उदा० १.रेनि पाई चादनी फटक सी चटक रूख फनाह-संज्ञा, पु० [फा० फना] नाश, मरण । सुख पाये पीतम प्रबेनी बेनी धनि है। उबा भयो थो दिली को पति देखत फनाह प्राज -बेनी प्रवीन __दाह मिटि गयो थो हमीर नरनाह को।। फटकना-क्रि० अ० [अनु॰] उड़ना, उड्डयन -चन्द्रशेखर क्रिया। फफकि-क्रि० वि० [अनु॰] फर्राटे से, वेग से, उदा० भटकि मटकि उठै मोहन में मनाली, तेजी। निहच मिलेंगे काक फटकि फटकि उठे। उदा. तुरत तुरंग करि तातो ताहि ताजन दै, -काशिराज फफकि फंदाय दियो बाहिर कनात के। फटकार-संज्ञा, पु० [हि० फटकन] अन्न की -चन्द्रशेखर भूसी, अनाज का छिलका । फर-संज्ञा, पु० [हि० फड़] युद्ध, लड़ाई २. उदा . भाल में लिखत भुलाने मेरी बेर कहूँ । जुए का दांव ३. बिछौना, बिछावन ।। माखन के बीच फटकार चहियतु है। उदा० १. करत हींसत फबत फुकरत, -बोधा फरमंडल मॅझार दल दीरघ दलत हैं । फटकारना-क्रि० स० [अनु॰] शस्त्र आदि चन्द्रशेखर . मारना, चलाना । साजि चतुरंग चमू जंग जीतिबे के लिए, उदा. एक एक क्षत्री रण धीरा । योजन भर हिम्मत बहादुर चढ़ो जो फर फेल पै।। फटकारत तीरा। -बोधा -पद्माकर फटकि --संज्ञा, पु० [सं० स्फटिक] स्फटिक, ३. सूल से फूलन के फर पै तिय फूलछरी बिल्लौर पत्थर । सी परी मुरझानी। -पद्माकर उदा० चूना की चटक चंद्रभानु के चरन लागे, फरकाना-क्रि स० [हि० फरकना] फड़फड़ाना, चहूचोर चमकत चौहटे चटक के । राज __ बार-बार हिलाना । बाट पाटित सुपट पाट हाट हाट हाटक उदा० आगम भो तरुनापन को बिसराम भई जटित लागे फाटक फटिक के। -देव कछु चंचल आखै । खंजन के युग सावक फटा-संज्ञा, पु० [सं० फरण] साँप का फण ।। ज्यों उड़ि पावत ना फरकावत पाखें । उदा० चंद की छटान जुत पन्नग फटान जुत मुकुट -बिसराम . बिराजै जटाजूटन के जूरे को ।। फरजी-संज्ञा, पु० [फा, फर्जी] शतरंज का -पद्माकर खेल, शतरंज का एक मोहरा जिसे वजीर कहा फटिका-संज्ञा, पु० [देश॰] गुलेल की डोरी के जाता है। बीचो बीच रस्सी से बुन्कर बनाया हुआ वह उदा० पहले हम जाइ दियो कर मैं तिय खेलति चौकोर हिस्सा जिसमें मिट्टी की गोली रख कर ती घर में फरजी। -तोष चलाई जाती है। फरद-वि० [अ० फर्द] १. बेजोड़, अनुपम उदा० लहुरी लहरि दूजी तांति सी लसति, जाके २. रजाई का ऊपरी पल्ला । बीच परे मौरे फटिका से सुधरत हैं। उदा० १. मोरन के सोरन की नैकों न मरोर रही -सेनापति घोरहू रही न, घन घने या फरद की। फतूह-संज्ञा, स्त्री [अ० फतेह का बहुवचन] | वाल विजय, फतेह । फरमार-वि० [फा० फर्माबरदार] आज्ञाकारी, उदा० तेते तुंग तीतुर तयार नृप कूरम के लै लै । आज्ञापालक, ताबेदार। For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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