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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिसवाज ( १५३ ) पुरवार उदा० गहि गहि पिसकब्जे मरमनि गब्ज तकि आगे गोला छूटि लाग्यौं तातें पुछपौरि तकि नब्ज काटत हैं। -पद्माकर फूटि है। पिसवाज-संज्ञा, पु० [फा० पिशवाज] नृत्य में पुटकाकरना-क्रि० स० [हिं० पटपटाना] भाड़ में पहना जाने वाला लहँगा । दाना भूजना, दाने का भाड़ में फूट जाना । उदा० प्यार सो पहिर पिसवाज पौन पुरवाई उदा० भरभूजिन कन भूजहि बैठि दुकान, पुटका ओढ़नी सुरंग सुर चाप चमकाई है। करति विहँसि कै बिरही प्रान । -ग्वाल -समा विलास से पिसानी-संज्ञा, पु० [फा० पेशानी] माथा, पुठेठो-वि० [सं० पुष्ट] पोषित, पुष्ट, पोषण मस्तक। किया गया। उदा० भूषन कहत सब हिन्दुन को भाग फिरै, उदा० चहुँ ओर ज्वालनि के प्रगटे समूह, जामैं चढ़े ते कुमति चकताहू की पिसानी मैं । लुवै छुवै जरै यह अगिनि पुठेठो है। -भूषण -सूरति मिश्र पिसेमान-वि० [फा० पशेमान] लज्जित, पुनेठा---वि० [बुं०] प्रवीण, चतुर । शरमाए हुए । उदा० मोहिं कछू लागत यह लरिका बातन उदा० घिn आसमान, पिसे जात पिसेमान अधिक पुनेठो। -बकसी हंसराज सुर, लीजै नैंक दया, मने कीजै बानरन कौं। पुनिंदु-संज्ञा, पु० [सं० पूर्ण + इंदु] पूर्णिमा -सेनापति का चन्द्र । पीकी--संज्ञा, स्त्री० [हिं० पीका] वृक्ष में उदा० कातिक पून्यो कि रात ससी दिसि पूरब निकले हुए नव पल्लव, कोमल । अंबर मैं जिय जान्यो । चित्त भ्रम्यौ पुमउदा० कोमल पंकज के पद-पंकज प्रान पियारे निन्दु मनिन्दु फनिन्दु उठ्यो भ्रम ही सों कि मूरति पीकी । -केशव भुलान्यो । -देव पीख-प्रव्य [सं. पीठ =स्थान] युक्त, सहित । पुरकना-क्रि० अ० [सं० पुलक] पुलकना, उदा० चढ़ी बेगमैं साह सुल्तान साथै, सबै बैस प्रसन्न होना । थोरी बड़े रूप पीखे । -चन्द्रशेखर उदा० मरकत रंजन मरक मेरे दृग-मृग, पुरकत पीठी-संज्ञा, स्त्री० [सं० पिष्टक] भिगोई हुई खंजन गरब गंदि गदि कै। पीसी दाल । पुरट-संज्ञा, पु० [सं०] स्वर्ण, सोना। उदा० कांच से कचरि जात सेष के असेष फन उदा, ता घरी ते का भयो बिसूरति है तेरी यह कमठ की पीठी पै पीठी सी बाटियतु है। मूरति निहारि भई मूरति पुरट की। -भूषण -नंदराम पोतमुख-संज्ञा, पु० [सं०] पीले मुख वाला, पुरना-क्रि० अ० [ हिं० पूरना ] मिल जाना, मौंरा। एक हो जाना, पूरा होना । उदा० प्रगट भयो लखि बिषमय, विष्नु धाम उदा० मुरकी रुकी बंक बिलोकत लाल गुलाल सानन्दि । सहसपान निद्रा तज्यो खुलो में बेंदा सबै पुरिगो । -पजनेस -दास पुरनारि संज्ञा, स्त्री० [सं०] वैश्या, बारपोम-वि० [सं० प्रिय] प्रिय, प्यारा ।। बनिता । उदा० करि हारा भोगहि कर्ना पोमहि मागो संभू उदा० पीतमु चले विदेस कौं यों बोली पुरनारि । को अंसी। -दास जपिहौं तुहि तेरे विरह माला देहु उतारि । पीरना-क्रि० स० [हिं० पीड़ा] पीड़ित करना, -सुंदर कष्ट देना। पुरन्दरी संज्ञा, स्त्री० [सं० पुरन्दर-इन्द्र ] उदा० लांबी गुदी लमकाइ के, काइ लियो हरि इन्द्राणी, इन्द्र की पत्नी, शची। लीलि, गरो गहि पीरयो। -देव उदा. कंचन लै बिमल बिरंचि ने बनाई किधौं पुछपौरि-संज्ञा, पु० [हिं० पीछे-+-पौरि] पीछे रुचिर अनूप देखि लाजत पुरन्दरी । का दरवाजा, पिछला फाटक । -रघुनाथ उदा० दौरि दिन लाग्यो नारि मेरु भरि सूर पुरवार-संज्ञा, पु० [सं० पुर-पाल ] नगर २० -देव उदा सानन्दि 'बंदि 14] प्रिय For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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