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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारि ( १५२ ) पिसकब्ज पारि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० पार] सीमा, जलाशय | पिक--संज्ञा, पु० [सं० पिकाङ्ग, ] पपीहा, का किनारा २. अोर, तरफ । चातक । उदा० केहि नर केहि सर राखिये खरे बढ़े पर | उदा० कोकिल, चाख, चकोर, पिक, पारावत पारि। -बिहारी नख नैन । चंचु चरण कलहंस के पकी बारनि सुखावति उघारे सीस गावति भुला कुंदरू ऐन । -केशव वति सी लोगन फिरत चहुँ पारि मैं । -देव । पिक्कना-क्रि० स० [सं० प्रेक्षण] देखना । पाल-संज्ञा, पु० [सं० पाट] पर्दा, ओहारी । | उदा० पिक्कत इक्कन इक्क ठिब्व तजि लिक्कन उदा० 'दास' मनमथ-साहि कंचन सुराही मुख तक्कत । -पद्माकर बंसजुत पालकी कि पाल सुभ रंग है। पिच-संज्ञा, पु. सं० पिच्य] दबाव, किसी वस्तु -दोस ___ को दबाना । पालक-संज्ञा, पु० [सं०] १. पाला हा लड़का, | उदा० खिचली भुजा सों लाल पिचली हिये दत्तक पुत्र २. पलंग ३. पालन करने वाला सों लाय निचली रहे न डोले विचली पलंग ४. अश्व रक्षक ५. पलना, छोटे बच्चों का पर । -वाल झूला। पिछौड़ी-वि० [हिं० पीछे+ औंड़ी (प्रत्य॰)] उदा० १. त्यों कबि ग्वाल बिरंचि बिचारि के जोरी जोराइ दई अति खासी । जैसोइ | उदा० कान्ह सों पिछौड़ी है कि कान्ह की कनौड़ी नन्द को पालक कान्ह सो तैसई कूबरी कंस है कि, मौड़ी है जु उरपी के छल अति की दासी। -वाल छाई है। -आलम ५. पालक के बालक की पांडे गति पाई पिद्दी-संज्ञा, स्त्री० [अनु॰] बया पक्षी की जाति जिहि गोरस के भांडे भटकाइ मुख छांड़े की एक चिड़िया । -देव उदा० चकई हरील पिद्दी अपार । पाली-संज्ञा, पु. [सं० पालि=पंक्ति] समुह, खुमरी सु परेवा बहु प्रकार । पंक्ति । -सूदन उदा० भोरन के सोर पछिपाली और आये, धाये पिधान-संज्ञा. पु० [सं०] तकिया, गिलाफ या लावक चकोर, दौरी हंसन की दारिका । प्रावरण, पर्दा । -देव उदा० संपति-निधान, रति पति के विधान, देव पाहर-संज्ञा, पु० [हिं० पत्थर] पत्थर, पाषाण लाज के पिधान, परिधान में छिपि रहे। कंकड़ । -देव उदा० इंदुमुखी अरबिन्द से पाइन, कंटक पाहर | पिराका- संज्ञा, स्त्री० [सं० पिष्टक] कली, माह परानी। -गंग गोफिया । पासनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० प्राशन] अन्न प्राशन, उदा, चंपे की पिराका है कि सोने की सिराका बच्चों को पहले-पहले अनाज चटाने की एक -नरोत्तमदास रीति । पिरारे-वि० [हिं० पीड़ा+वारे-वाले] कष्ट उदा० गाये ते मँगाये गाये गाये दानियौ जगाये । दायक, पीड़ा देने वाले । पौरि पूरन पला की है लला की आजु उदा० रूप रस रास पास पथिक पिरारे ऐन नैन पासनी। - देव ये तिहारे ठग ठाकुर मदन के। पिंगला - संज्ञा, पु०[सं०] एक प्रकार का उल्लू, -रघुनाथ उलूक । पिलना-क्रि० अ० [हिं० पेलना] घुसना, प्रवेश उदा० पारावत, पिंगला, पपीहा, पिक, कूकि करना, मिलना। होत, केकी अौ कपोत, कुंज पुंजनि घिरत उदा० ज्यों की त्यों तुरत उठि धाई वा सरति -देव हीसौं मुरति न पास प्रेम पास में पिलि पिंड-संज्ञा, पु० [सं०] व्यक्ति, प्राणी । गई। -देव उदा० हटपटाय के लगत हे पोछे पिंडैभूत । पिसकब्ज-संज्ञा, स्त्री० [फा० पेशकब्ज ] -बोधा | कटारी, भुजाली। For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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