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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारण पनि समाज पास भी किया क्या काम करना नाम का नाम गायन - केशव परिग्रह ( १४८ ) पलावक वाले। वाहक, संदेश पहुँचाने वाला २. कबूतर नाम उदा० जन परिगह उमराउ सब बेटा भैया बंध ।। का एक पक्षी । -केशव उदा० पावन बसन्त मन भावन घने जतन पवन परिग्रह-संज्ञा, पु० [सं०] परिजन, निकट- परेवा मानो पाती लीने जातु है । वासी। - मालम उदा० अघ निग्रह संग्रह धर्म कथान, परिग्रह साधुन २. सुखी परवा पुहुमि में एक तुही बिहंग । को गनु है। - बिहारी परिपारि-संज्ञा, पु० [सं० परि+पालि] १. । परोढ़नि-संज्ञा, स्त्री० [सं० प्रौढ़ा] प्रौढ़ाएँ, किनारा, घेरा २. मर्यादा । । प्रौढ़ानायिकाएँ। उदा० किहिनर, किहिंसर राखियै खरै बढ़ परि- उदा० लाज सकाम सु मध्यम बाम, विष मति पारि । -बिहारी सों, पति सों सतराती। नौल सनेह निहारि परिबीत-वि० [सं० परिवृत्त] वेष्ठित, आवृत्त, नवोढ़, बिहारि परोढ़नि लौं ललचाती । घिरा हुआ। -- देव उदा० गुननि अतीत, परबीत बीत रागनि मैं, | परोना-क्रि० सं० [सं० प्रोत] मानना, स्वीकार बाहिर हु भीतर निबीत रूप रावरो। __ करना २. पिरोना, गूंथना। -देव उदा० पेम को परोय लीज बिरह न बोरि दीजै. परिलाल-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लालपरी] लाल नेह को निहोर कीजै छीजै बिनु पाँवरी । परी, इन्द्र की एक अप्सरा । -आलम उदा० ठाढ़ी गई ह्र तहाँ कर ठोढ़ी दै, पौढ़ि गई [ परोरना-क्रि० स० [?] मंत्र पढ़ कर फंकना। परिलाल गढ़ी सी। –बेनी प्रवीन | उदा० खेलायो हमैं कहि तोष तुम्है मनुहारि के परिषद -संज्ञा, स्त्री० [सं० परिषद्] समूह, | मंत्र परोरि परोरि । -तोष भीड़, राशि । पर्ब-संज्ञा, पु० [सं० पर्व] १. ग्रहण २. उदा० पैजनी जराऊ बजे गोरे गुलफनि कर कोरे त्योहार ३. पूरिंगमा । मणि कंकण कनक परिषद के । -देव उदा० १. रैन भए दिन तेज छिपै अरु सूर्य छिपै परुखाई-संज्ञा, स्त्री० [सं० परुषता] परुषता, अति-पर्ब के छाये। -गंग कठोरता। पर्वतप्रभा-संज्ञा, पु० [सं०] राक्षस, दैत्य उदा० मुख की रुखाई सनमुख सरुखाई परुखाई यों उदा० पन्नग प्रचण्डपति प्रभ्र की पनच पीन पर्वन पाई सुरुखाई सुरुखाई सी। -देव तारि पर्वतप्रभा न मान पावई ।। परिहस-संज्ञा, पु० [देश॰] दुख, कष्ट । -केशव उदा० पीर पर बूझत न इहै परिहसु है। पल-संज्ञा, पु० [सं०] १. आमिष, मांस २. -पालम क्षण। परेखो-संज्ञा, पु० [सं० परीक्षा] १. फल २. उदा० पल सोनित पंचालिका मल-संकलित पश्चाताप ३.जाँच परीक्षा ४. विश्वास, विशेष । -केशव प्रतीति । चरबी को चंदन पूहप पल ट्रकन के अच्छत उदा० १. कहिबे की कोउ किन देखौ न परेखौ. प्रखण्ड गोला गोलिनु की चालिका। वै तौ चाँदनी के चोर मोर पच्छ-अच्छ सब -सूदन -घनानंद पलक-संज्ञा, पु० [सं० पर्यंक] पर्यक, पलंग। २. चूर भयौ चित पूरि परेखनि एहो कठोर उदा० अबहूँ हलक पर हिलकी हिलोरति, पलक अजी दुख पीसत ।। -घनानंद पर प्यारी की पलक पल लागी है। -देव परेग-संज्ञा, स्त्री० [अं० पेग] लोहे के छोटे पलक्का-क्रि० वि० [हिं० परलंका - पलंका] काँटे । बहुत दूर। उदा० कसके 'द्विजदेव जू ऐसी बढ़ी, उर अन्तर उदा० कहै पद्माकर सुपुट्ठन पनारी परी, कमर मानौं परेग परौ । -द्विजदेव के कोता पिट्ठ पिट्ठत पलक्का से। परेवा-संज्ञा, पु० [सं० पारावत] १. संदेश -पद्माकर For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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