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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दहुचाल ( १२४ ) दायल दहिंगल । वति या भाव, दानशीलता । उदा० चक्रवाक खंजन पपीहा मैना चांडूलदहिये उदा० हरिह के जेतिक सुभाव हम हेरि लहे, दरेवा खूब खूमरी बिकानी है। -बोधा दानी बड़े पै न मांगे बिन ढरै दातुरी। वहुचाल-संज्ञा, स्त्री०, [बु.] शरारत, उपद्रव --घनानन्द बदमाशी । दावनी-संज्ञा, स्त्री० [फा०] १. किसी को दी उदा० हाल चवाइन कौ दहुचाल सु लाल तुम्हें या जाने वाली रकम २. पेशगी। दिखात की नाहीं । --ठाकुर उदा० दादनी की बेर जब देनी होत सौ की ठौर वहेली-वि० [सं० दिग्ध] ठिठुरी हुई, ठंड से | बड़े हैं निदान तब दोसै एक देत हैं। संकुचित। -सेनापति उदा० गाहत सिंधु सयाननि के जिनकी मति की दादि-संज्ञा, स्त्री० [फा० दाद] न्याय, इंसाफ अति देह दहेली। -केशव मु. दाद देना - न्याय करना । दाइ-संज्ञा, स्त्री० [हिं० देवरी] देवरी, अनाज | उदा. करी-साहि सों जाय फिरादि । अधिक के सूखे दाने को बैलों द्वारा रौंदवाने का कार्य । अनाथन दीजै दादि । -केशव उदा० ज्यों दाँइ देत में वृषम पांति, चहुँ ओर दाना-वि० [फा०] बुद्धिमान, अक्लमन्द । फिरति है चपल भौति । -सोमनाथ | उदा. प्यारी तेरे दंतन अनारी दाना कहि कहि दाउन- संज्ञा, पु० [सं० दाम ] रस्सियां, दाना ह्व के कवि क्यों अनारी कहवाइहै। डोरियाँ । -दास उदा० जीनन के दाउन अति मनमाउन लगत | दाप-संज्ञा, स्त्री० [सं० दपं] घटा, शोभा, सुहाउन सबहीं कौं। -पद्माकर कांति २. धाक ३. गर्व । दाऊदी-संज्ञा, स्त्री० [फा०गुलदाउदी] गुल- उदा० १. राती भई भूमि सो तो यावक की छाप दाउदी नामक सुन्दर गुच्छेदार पुष्प । चुनरी की दाप रंग ऐसो बरसैं अशेष घन। उदा० सेवत हजार मखमल में कमल पद, रस -द्विजदेव लीन पछतानी दाऊदी सुहाई है। नील घन धूम पै तड़ित दुति धूम-धूम - रसलीन धू धरि सी घाई दाप पावक लपटि सी। वाग-संज्ञा, स्त्री० [सं० दग्ध] . जलन दाह, -देव २. प्राग । २ चंड चक्र चाप लौं उदंड दंड दाप ली उदा० उर मानिक की उरबसी डटत घटतु दृग सुमारतंड-ताप लौं प्रताप के छरा परे । दाग । -बिहारी -पद्माकर ग्वालकवि गोरी को गरौ यों भरि आयो दापन- संज्ञा, पु० [सं० दर्प] ताप, ज्वालासुनि जिगर जगर जरन लाग्यौ विरहाग जलन । दागे दहि । -ग्वाल उदा चातक यातें करौं बिनती कवि काम क्षमौ बाघ- संज्ञा० पु० [स] दाह, ज्वाला, गरमी। अपनी जा अलापन । तें अपने पिय को उदा० कहलाने एकत बसत अहि मयर मग बाघ सुमिरै मरै हम तेरी जुबान के दापन । जगत तपोवन सों कियो दीरघ दाघ निदाघ। -बोधा -बिहारी दामा-संज्ञा, स्त्री० [सं० दावा] दावानल । दाटना-क्रि० सं० [हिं० डाँट, सं. दांति ] उदा० नन्द के किसोर ऐसो प्राजु प्रभु को हैदबाना, संत्रस्त करना, आतंकित करना । कही पान करि लीन्हो वृज दीन लखि उदा० जा दिन चढ़त दल साजि अवधतसिंह ता दामा को । -रघुनाथ दिन दिगंत लौं दुवन दाटियतु है। दायबी-संज्ञा, पु. [हिं० दांव] दाँव या अवसर -भूषण ] की ताक में रहने वाला। दात-वि० [सं० दाँत] दमित, दबाया हुआ। उदा. छूटी छबि-रसमैं चटक चोखे बसमैं, बिलो उदा० गजेति तर्जति पाप कॅपात । बात करत के मन बस मैं न रोकें रहै दायबी। जनु पातक दात । -केशव -घनानन्द दातुरी- संज्ञा, स्त्री० [स० दातृत्व] दान की बायल-संज्ञा, पु० [हिं० दाँव] दांव लेने वाले । For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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