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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दरारना ( १२३ ) दहिये - दास उदा० सूरत के साह कहै कोऊ नरनाह कहै कोऊ पंच दसानि को दीपक सो कर कामिनि को कहै मालिक ये मुलुक दराज के । लखि दास प्रबीने । -दास - पद्माकर २. दामिनी दमकनि' दिसान में दसा की २. कीन्हीं करजनि की दरज दरजी की -पद्माकर बहू बरजे नहिं माने। -देव वसई वसा-संज्ञा, स्त्री० [सं० दशवी दशा] दरारना-क्रि० सं० [हिं० दरार +ना वियोग की दसवीं अवस्था, मृत्यु । (प्रत्य॰)] विदीर्ण करना, नष्ट करना । उदा० खरी है निसाँसी तैतो कीन्ही है बिसासो उदा० गरज ना मेघ तोम तरजै ना-छुटि छटा मारि, दसई दसा सी लाख भांति लखि लरज न लौंग लता दादुरि दरारें ना। लेखिहों । -आलम -नंदराम दसना-संज्ञा, पु० [हिं० डासना] बिछौना, दरीचिका-संज्ञा, स्त्री॰ [फा० दरीचा ] बिस्तर। खिड़की, झरोखा । उदा० छोरि धरी रसना दसना पर पायन मैं उदा०-धरि मौर ही की जनु देह धरीक दरी बिछियान करै ना। -नन्दराम चिका में मुरझाइ रही। --- द्विजदेव दसोंधिय-संज्ञा, पु० [सं० दास + बंदी= माट] दरेवा-संज्ञा, पु० [?] एक पक्षी। दसौंधी, चारण, भाट, यश-गायक । उदा० चक्रवाक खंजन पपीहा मैना चाँडल दहिये | उदा० बहु बंदी मागध सूत गुनि गुनी दसौंधिय दरेवा खूब खूमरी बिकानी है। -बोधा सोधि नित । रैयत राउत राजहित चारी वलगीर-वि० [फा दिलगीर]१. उदास, दुखित, बरन बिचारि चित । -केशव रंजीदा २. पत्तों का गिरना । वह-संज्ञा, पु० [सं० हृद] हृद, गहरा जल, उदा. क्यों है दिलगीर रहि गए कहँ पीरे पीरे, नदी में वह स्थान जहाँ अथाह जल हो। एते-मान मान यह जानै बागवान जू । उदा० कंज सकोचि गड़े रहैं कीच में मीनन बोरि -दास दियो दह-नीरनि । वलदार संज्ञा, पु० [सं० दल=सेना+फा० वहन दुति-संज्ञा, स्त्री० [सं० दहन+द्य ति] दार प्र०] सेनापति । भग्नि प्रकाश । उदा० बारह हजार असवार जोरि दलदार ऐसे- उदा० जल देविन कैसो श्रमवारि किंधौं-दहनअफजलखान आयो सुर-साल है।। दुति सी सुखकारि । -केशव -भूषण बहपटना-क्रि० स० [हिं० दहपट] ध्वस्त करना, वलेल-संज्ञा, स्त्री० [मं० गिल] कष्ट, सजा । नष्ट करना, चौपट करना । उदा० दौरि दावदारन पै द्वादसी दिवाकर की । उदा० देस दहपट्टि पायो मागरे दिली के मेंडे दामिनी दमकनि दलेल दुग दाहे की। बरगी-बहरि मानौ दल जिमि देवा को । -पद्माकर -भूषण दवन-संज्ञा, पु० [सं० दमनक] दौना, दौना दिल्ली दहपट्टि, पटनाहू को झपट्टि करि नामक एक पौधा २. एक छंद । कबहुक लत्ता कलकत्ता को उड़ावै गो । उदा० केतकि गुलाब चंपक दवन, मरुभनेवारी -पद्माकर छाजहीं। - दास बहल-संज्ञा, पु० [हिं० दह, सं० हृद] १ कुंड, दवना-क्रि० अ० [सं० दव] जलना, प्रज्वलित होज। होना । उदा० गोधन खरिक खेत मह क्यार । गोरस दहल उदा० तमीपति तामस ते तमिल ह उयो पाली, नाज अरु न्यार। -घनानंद तियनि बधनि कहूँ दूनोई दवतु है। दहलीज-संज्ञा, पु० [फा०] बैठक। -मालम उदा० बेई हेम हिरन दिसान दहलीज मैं, वेई गजवशा-संज्ञा, स्त्री० [सं०] वर्तिका दीपक की राज हय गरज पिलन कों। बत्ती, २. दीपक की जलती बत्ती । -नरोत्तमदास उदा० भीजि सनेह सो देह दशा विरहागिन लागि- ! दहिये-संज्ञा स्त्री० [हिं० दहिगंल ?] एक पक्षी खरी पजरी जू । -देव। जिसे महरि या ग्वालिन कहा जाता है, For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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