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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तोसना www.kobatirth.org ११६ २. तुपक तमंचे तीर तोरा तरवारन तें, काटि काटि सेना करी सो चित सितारे की । -- पद्माकर ३. मान दे कै तोरा तुर्रा सिर पै सपूती को -- पद्माकर तोसना - क्रि० स० [ संतोष ] संतुष्ट करना । उदा० बेद मरजाद लोक लीक लाज लोगन की कुल को धरम सो छोड़ायो कैसे तोसों जी । - रघुनाथ तोसे खाने- संज्ञा, पु० [तु० तोशक + फा खाना ] वस्त्रों तथा श्राभूषणों का भंडार । उदा० तोसेखाने, फीलखाने, खजाने, हुरमखाने, खाने खाने खबर नवाब खानखाना की । गंग तौ-संज्ञा, स्त्री० [फा० ताब] १. ताब, गरमी, ताप, क्रोध, आवेश . शक्ति, धैर्य । खदा० 'आलम' बिलोकि मोंहि मुख मोर्यो तो में आइ, मैं हूँ मन में कहयो, सुबीती रैनि श्राजु ही । तौरा - संज्ञा, पु० [अ० प्रतिष्ठा । उदा० लग्यो होन तुरुकन को जौरा । को राखे हिंदुन को तीरा ॥ - लाल कवि त्यायो - क्रि० सं० [सं० तप्त ] तप्त करान, गर्म करना । उदा० भूतल तें तलप, तलहू तें भूतल में, तलप दति जब भूतलहि त्यायो है | गंग -- श्रालम तुर्रा ] शिखा, चोटी, त्यों - अव्य० [देश० ] तरफ, और 1 उदा० सौतिन त्यों सतराइ चितौति, जिठानिन त्यों जिय ठानति प्रीतिहि । - देव त्यौनार-संज्ञा, पु० [हिं० तेवर ] ढंग, तर्ज, तरीका । बनत—संज्ञा, पु० [हिं० थान सं० स्थान] गाँव का मुखिया । उदा० फौजदार के फिरत ज्यों थाने रहत थनैत । थ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थपना उदा० रही गुही बेनी लख्यौ गुहिबे को त्यौनार । - बिहारी त्यौर — संज्ञा, पु० [सं० त्रिकुटी] १. क्रुद्ध दृष्टि दृष्टि, चितवन । उदा० अधर मधुरता, कठिनता कुच, तीचनता त्यौर । रस कवित्त परिपक्वता जाने रसिक न और ॥ सोभा सहज सुभाय की नवता सील सनेह । ये तिय के माधुर्ज हैं जानत त्यौरन तेह || दास —दास त्रसना - क्रि० स० [सं० त्रास ] चौंकना, चकित होना । उदा० सुतनु अनूप रूप रुतनि निहारि तनु, अतनु तुला में तनु तोलति त्रसति है । — देव त्रसरैनि—संज्ञा, स्त्री० [सं० त्रसरेणु] पुराणों में उल्लिखित सूर्य की पत्नी, धूलिकरण । उदा० त्यों त्रसरैनि के ऐन बसै रबि, मीन पै दीन ह्र सागर धावै । त्रिदश - संज्ञा, पु० [सं०] देवता, सुर । उदा० त्रिदशाांजन फूलन वृष्टि करें । --- घनानन्द -बोधा त्रिदेवता - वि० [सं०] एक स्त्रीव्रत, जो केवल अपनी स्त्री से ही प्रेम करता है । उदा० तेही त्रियदेवता पै पायों पति केसोदास पतिनी बहुत पतिदेवता बखानी है । -केशव त्रिसोत] गंगा, त्रिसोता -संज्ञा० स्त्री० [सं० देव नदी । उदा० भस्म त्रिपुण्डक शोभिजैं, बररणत बुद्धि उदार । मनो त्रिसोता सोत दुति, बंदति लगी लिलार । --केशव —बोधा थपना- क्रि० अ० [सं० स्थापन ] ठहरना, जमना, स्थापित होना । For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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