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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिलकु ८. तरुनी-तिलक नन्दलाल त्यों तिलक | संग्रहणी नामक एक रोग। ताकि, तोपर हौं वारों तिलतिल के तिलो- उदा० कहै पद्माकर चतुर्भुज को रूप मयो, बड़ेत्तमै । --गंग बड़े पापनिहूँ ताप को तिसार भों। तिलकु-वि० [सं० तिल+एक] तिलमात्र, क्षण -पद्माकर मात्र। तीखन-वि० [सं० तीदरण] तीक्ष्ण, तेज । उदा० न वक-सर से लाइ के, तिलकु तरुनि इत उदा० सीखति सिंगार मति तीखति प्रवीन बेनी, ताँकि पावक-झर सी झमकि कै, गई सौतिन की मीखति गई है सुखसारे को।। झरोखा झाँकि । -~~-बिहारी -बेनी प्रवीन तिलाम संज्ञा, पु. [?] गुलाम का गुलाम, तीतुरी-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] कान का एक आभूदासानुदास । षण जो खटले के साथ लटकता रहता है उदा० राम को कोऊ गुलाम कहै ता गुलाम को और जिसकी आकृति पत्ते के समान होती मोहिं तिलाम लिखीजौ। पद्माकर है। २. एक उड़ने वाला सुन्दर कीड़ा, तिलोरो-संज्ञा, स्त्री० [हिं० तिलौरी] तेलिया, तितली। मैना । उदा० १. तनक-तनक तन तीतरी तरल गति उदा० लाल तो चकोरै मोर मानत कहो न कछू, मानहुँ पताका पीत पीड़ित-पवन है। कैसी कर बानक तिलौरी तै' तकत है। -केशव -द्विज बलदेव तीते-वि० [सं० तीमित, प्रा. तित] प्रार्द्र, तिलौंछ-वि० [सं० तैल+हि० प्रौछ] जिसमें गीला,भीगा हुप्रा । तेल न हो, रूखा, स्नेहहीन। उदा० सो सुनि पियारी पियगमन बराइबे कों, उदा० हँसि हँसाय उर लाय उठि, कहि न रुखौहैं प्रसूनि अन्हाइ बोली आसन म तीते पर । बैन । जकित थकित से ह्र रहे, तकत -पद्माकर तिलौंछे नैन । -बिहारी करवा की कहाँ गंग तरबा न तीते होंहि, तिलौछना --क्रि० अं+ [हि० तिल+औंछना] सरवा न बूड़ परवाह नदी नारि के । तेल से पोंछना, सुरमा आदि का चिह्न तेल से -~-गंग भीगे कपड़े से छुड़ाना, तेल लगाकर चिकना तुंगतनी-वि० [सं० तुंग+ तनी= स्तनी] तुंगकरना। स्तनी, उन्नतपयोधरा । उदा० हँसि, हँसाइ, उर लाइ उठि, कहिन रखौं उदा०-अपनी तनु छांह सों तुंगतनी तनु छैल हैं बैन । जकित थकित ह तकि रहे तकत छबीले सों छुवै चलती। -दास तिलौंछे नैन । -बिहारी तुड-संज्ञा, पु० [सं०] १. मुख २. सूंड, सुण्ड । तिलौनी-वि [हिं तेल+ौनी] सुगंधित, तेल उदा० १. त्रिबली त्रिवेणीतट रोमावलि धूम लट फुलेल से युक्त। यौवन पटल ज्योति बेंदी छबि तुंड मैं । उदा पाछी तिलौनी लसैं अंगिया गसि-चोवा की -देव - बेलि बिराजति लोइन । -घनानन्द २. ग्वाल कवि जैसौ कुंभ कान दंत तुंड तिष्य-वि० [सं० तीक्ष्ण] तीदरण, तेज धार तैसो तैसी फुतकार औ चिधार अति मोटी वाली। - ग्वाल उदा० बुगदा गुपती गुरज डाँढ़ जमकील बतारी। तुद-वि० [फा०] १. तेज, प्रचण्ड २. पेट, सूल अंकुसा छुरी सुधारी तिष्य कुठारी। उदर [सं०]। -सूदन उदा १. होते अरविंद से तो आयके मलिदे बंद, तिसरी संज्ञा स्त्री० [हिं० तीन + सरी= लड़ी] लेते मधुबंद कंद तंद के तरारे से । -वाल तीन लड़ियों का एक प्राभूषण, टीका।। और अमरन अब काहै को सजैगी बीर, एक ही उदा० तिसरी कंटी भ्र व डॅडी द्रिग दोउ पला में बाढ़ी अंग-अंग छबि तुंद है। बनाइ । तोलत प्रीति दुहून की घटि-बढ़ि –बेनी प्रवीन करी न जाइ । -जसवंत सिंह । देह लता नैन अरविंद मौंह भौर पांति, तिसार-संज्ञा, स्त्री [सं० अतिसार] अतिसार, अधर ललाई नव पल्लवनि तुंदरी । For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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