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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैतिवार ज्या ज तिवार-संज्ञा, पु० [हिं० जैत + वार] विजयी, | जोयसी-संज्ञा, पु० [सं० ज्योतिषी] ज्योतिषी । जीतने वाला। | उदा० फिरि हुलस्यो जिय जोयसी समुझयो जारज उदा० इन्दु बार-बार देति बकसीस जैतिवारन को जोग। __-बिहारी बारन को बाँधे जे पिछारी दुरे बचिकै । जोर--संज्ञा, पु० [?] डोर बाँधने का बंद जो -देव जेवर में लगा रहता है। जैनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० विजयिन्] विजयी उदा० हाथन लेत बिरी लटकै मखतल के फंदनि (जयिनी)। जोर जवा के। -गंग उदा० जोलना-क्रि० अ० [सं० ज्वल] जलना, संतप्त इन्दु रविचन्द्र न फणीन्द्र न मुनीन्द्र न नरिन्द्र न होना । नगोन्द्र गति जानै जग जैनी को। -देव उदा० फागु के प्रावत जैसी दसा भई सो रधुनाथ बान सों मैन कटाक्ष सों नैन सोये जग जैन सुनौ मन जौल। बिख्यात हैं दोऊ । -- रघुनाथ --रघुनाथ जोला-वि० [हिं० जोड़] जोड़ा हुप्रा । जैयद--वि० [अ० जैयिद] प्रचण्ड, धुरंधर, बहुत उदा० करम करोरा पंच तत्वन बटोरा फेरि ठौर बड़ा। ठोर जोला फेरि ठीर ठौर पोसा है । उदा० जम को जहर, मानो जैयद कहर भयो, हहर हहर चित्रगुप्त के करेजें होत । -ग्वाल -पद्माकर जैरज--संज्ञा, पु० [!] पिंडज, गर्भ से जीवित जोल-संज्ञा, स्त्री० [सं० ज्वाला] ज्वाला, आग, उत्पन्न होने वाला जीव । अग्नि । उदा० जैरज, अंडज, स्वेदज प्रौ उभिझझ चहुँ उदा० फागु के प्रावत जैसी दसा भई सो रघुनाथ जुग देव बनाई। .. -देव सुनौ मन जोलै । --रघुनाथ जोगमाया-संज्ञा, स्त्री० [सं०] लदमी । जोशन-संज्ञा, पु० [फार.1 जिरह, कवच । उदा० जोगीस ईस तुम ही यह जोग माया । उदा० चलत भई चकचौंध बाँधि बखतर बर -केशव जोशन । -केशव जोगीस-संज्ञा, पु० [सं० योगीश] शंकर, जोह--संज्ञा, स्त्री० [हिं० जोहना-देखना] दृष्टि महादेव । आँख । उदा० जोगीस ईस तुम हौ यह जोगमाया । उदा० श्रीपति सुकवि महावेग बिन तुरीफीको, -केशव जानत जहान सदा जोह फीको धूम को । जोट-संज्ञा, स्त्री० [सं० योटक हिं० जोड़ा] -श्रीपति नायिका, सहचर । जोगरी-संज्ञा, पु० [?] घोड़े का एक दोष । उदा० चंदन प्रोट करै पिय जोट, पै अंचल प्रोट दृगंचल मूदै । -देव उदा० राते प्रोठ जौगरीहीन । राती जीभ सुगंधनि जोते-संज्ञा, पु० [सं० ज्योति] तेज समूह, तेज लीन । -केशव स्विता की राशि । जौर-क्रि० वि० [फा० जौर] १. आवेश में, वेग उदा० ए ही सुनि धाई, सूखदाई तें मिलन हेतू, पूर्वक २. जुल्म, अत्याचार [संज्ञा, पु०1। प्राइगे तहाँई, कन्हाई अंग जोतें ही । उदा० १. चौंरे कलगी धरै, दौर बारिधि तर, -ग्वाल जोर चढ़ि लरै को इतहि भावै । जोम--संज्ञा, पु० [अ० जोम] गर्व, अहंकार-उमंग -देव उत्साह, जोश । २. नव नागरि तन मुलक लहि जोबन उदा० सखि, नैनन को जनि जोम करो, इनके सम आमिर जौर। - -बिहारी सोहत कंज बनो। -दूलह ज्या--संज्ञा, स्त्री० [सं०] प्रत्यंचा, धनुष की जोयत--संज्ञा, पु० [?] एक सुगंधित पुष्प । डोरी । उदा० माधवी न मालती में जूही में न जोयत में, [ उदा० औरे भयो रुख तातै कैसे सखी ज्यारी. केतकी न केबड़ा में, सरस सिताब में । होति, बिफल भए हैं बंद कटून वसाति है । -ग्वाल --सेनापति For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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