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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जलेबदार ( ३. भूपति भगीरथ के जस की जलूस, कंधौ प्रगटी तपस्या पूरी कँधो जन्हुजन की - पद्माकर जलेबवार संशा, पु० [फा०] मुसाहब उदा० प्रायो है बसन्त ब्रज ल्यायो है लिखाइ आली, जोन्ह के जलेबदार काम को करोरी है । -श्रालम - www.kobatirth.org जव संज्ञा, स्त्री० [सं०] तीव्रता, तेजस्विता, स्फूर्ति, शक्ति । उदा० देखिये जवन सोभा घनी जुगलीन माँझ नाम हूँ सौं नाती कृष्ण केसी को जहाँ न है । -सेनापति हाथ का एक अनेक आकृतियाँ गुथी जवा - संज्ञा, पु० [सं० यव] आभूषण जिसमें नौ की रहती हैं । उदा हाथन लेत बिरी लटकें मखतूल के फूँदनि जोर जवाके । गंग जवारे संशा, पु० [० जवाल] निकट, पास २, जंजाल प्राफत ३. जौ के हरे अंकुर । उदा० देखे मतवारें गजराज न जवारें आवै, दई के सँवारे हो सवारे क्यों न भागहू गंग जबाल संज्ञा, पु. [अ० जवाल] प्राफ़त, बला, जंजाल । उदा० ज्वाल सों कला निधि जवाल सी जोन्हाई जोति सीसा को प्रवास यहाँ दावा सो दगत है । - चन्द्र शेखर जवोले- वि० [सं० जव = स्फूर्ति, शक्ति + हिं० ईला प्रत्यय ] शक्तिशाली, तेजस्वी, स्फूर्ति, - - सम्पन्न । उदा० नागरि नबेली नट नागर जवीले छैल कीन्ही चतुराई कोटि काटन कलेस की । - —नंदराम जसन – संज्ञा, पु० [फा० जशन] १. हर्ष, आनन्द २. उत्सव । उदा० १. विष से बसन लागे श्राणि से प्रसन जारें जोन्ह को जसन कला मनहु कलप है । -दास श्रयश, ६ १ जसना संज्ञा, अपयश | पु० [सं० न + यश ] उदा० सुभ माल प्रसून फनी इक सौं रिपु मित्र समान जसौ जसना । — सूरति मिश्र जहना- क्रि० प्र० [सं० जहन ] त्यागना, छोड़ना २. नाश करना । ) जामक उदा० कहै पद्माकर परेहू परभात प्रेम पागत परात परमातमा न जहिये । पद्माकर जाँगरे - संज्ञा, पु० [देश० जाँगड़े] कीर्ति गायक, भाट, चारण । -- उदा० जहँ जाँगरे करखा कहें अति उमँगि आनँद को लहैं । -- पद्माकर जाग १. जागृति, -संज्ञा स्त्री० [सं० जागृति] जगना, उत्पन्न होना - यज्ञ । उदा० १. रघुनाथ मोहन विदेस गये जादिन सों तादिन सौ गुजरेटी बिरह की जाग में । - रघुनाथ चमकना, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , - जागना - क्रि० सं० [सं० जागरण ] प्रकाशित होना । उदा० तहाँ जाइ सखियन के सँग पवि सोभा निरखन लागी । चन्द्रक चूर समान बालुका भानु किरनि सौं जागी । - सोमनाथ - ― जाजर वि० [सं० जर्जरित] छेददार | उदा० काजर की रेख उर जाजर करति है । For Private and Personal Use Only - श्रालम जाति-संज्ञा स्त्री० [सं०] पंक्ति, समूह, वर्ग । उदा० आँखै कुमोदिनि सी हुलसी मनि दीपनि दीपक दान की जाति सी । —रघुनाथ जादमा -संज्ञा, पु० [सं० यादव ] यादव, अहीर । उदा० भारी विषधर भोगी द्व जीभन बोल डोलै मी ह्रममा की जादपा की पाँच प्रा चली । - देव जान - संज्ञा, पु० [सं० यान] रथ, यान । उदा० अजित अजान भुज भुजग भोजन जान, दुभुज सम्हारो, जदु भूभुज भुलिख्या हों । — देव जापता-संज्ञा, पु० [अ० जाब्ता ] राजदरबार का कायदा, नियम । उदा - श्राये दरबार बिललाने छरीदार देखि, जापता करनहार नेकहू न मनके । ― जाबुक संज्ञा, पु० [हिं० जावक ] महावर । उदा० सखियानि सो देव छिपे न छिपाये लग्यौ अँखियानि मैं जाबुक सो । — देव जामक- -संज्ञा, पु० [सं० यामिक] १. रक्षक २. प्रहरी । - उदा० १. कवि तो वर करि भारती भाय - भूषण जावक, -- जस जामक कौ करुणा भरें । - कुलपति मिश्र
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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