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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जमेस जलूस लै देखिबो कीजै । -पजनेस स्तम्भन] जल के प्रभाव का स्तंभन या रुकावट, जमेस - संज्ञा, पु० [सं० यम+ईश] यमराज ठहराव । मृत्यु का एक देवता। उदा० बिरह बिथा जल परस बिन बसियतू मो उदा० तारक जमेस की, विदारक कलेस की है, मन ताल । कछु जानत जल थंभ बिधि तारक हमेस की है, तनया दिनेस की। दुर्बोधन लौं, लाल । -बिहारी -ग्वाल जलप-संज्ञा, स्त्री० [सं० जल्प] कथन उक्ति, जर-संज्ञा, पू० [सं० ज्वर| ज्वर, बुखार, ताप २. प्रलाप बकवाद । उदा० बिछुरै ते बलबीर धरि न सकति धीर, उपजी उदा० काल की कुमारी सी सहेली हितकारी लगे । बिरह पीर ज्यौं जरनि जर की। गात रसबारी मानो गारी की जलप है। -आलम -दास जरजार--संज्ञा, स्त्री० [सं. ज्वाल जाल] एक २. जल्पति जकाति कहरत कठिनाति माति, प्रकार की तोप । मोहति मरति बिललाति बिलखाति है। उदा० लिए तुपक जरजार जमूरे। --चन्द्रशेखर - दास जरब-संशा, स्त्री० [फा. जरब] चोट, पाघात । जलपना-क्रि० अ० [सं० जल्पन] डींग मारना, उदा० जोबन जरब महा रूप के गरब गति, मदन प्रलाप करना, व्यर्थ की बात करना । के मद मद मोकल मतंग की। उदा० कबि आलम आलस ही जलपै किलक कुच -मतिराम खीन भई कलता। - आलम जरवाफ- संशा, पु० [फा० ज़रबफ़त] जरी का | जलाक । जलाक-संज्ञा, स्त्री० [?] लू, भीषण गरमी । काम किया हुआ रेशमी वस्त्र । उदा० कहै पद्माकर त्यों जेठ की जलाकै तहाँ उदा० भूमत झुलमुलात भूलें जरबाफन की जकरे पावै क्यों प्रबेस बेस बेलिन की बाटी है। जंजीरें जोर करत जिकिरिहै। -भूषण -पद्माकर अरबीला-वि० [फा० जरब+ईला (प्रत्य॰)] जलाजले--संज्ञा, स्त्री० [हिं, झलाझल] झालर । चमकीला, भड़कीला ।। उदा० सोने की सिंदूख साजि सोने की जलाजले जु उदा० नीले जरबीले छुटे, केस सिवार समाज । के सोने ही की घाँट घन मानहु बिभात के। लपट्यो बृजराज रंग, कै लपट्यो रसराज । -केशव -भूपति कवि जलाहल- संज्ञा, पु० [देश॰] दूर तक प्रसरित जरा-संज्ञा, पु० [सं० जाल] जाल, सूत का वह जल, अत्यधिक जल । फंदा जिसमें मछलियां फँसाई जाती हैं। उदा० 'द्विजदेव' संपा की कुलाहल चहूँघा नभ, सैल उदा. दीन ज्यों मीन जरा की भई, सुफिरै फरक ते जलाहल कौ जोगु उमहतु है। -द्विजदेव पिंजरा की चिरी ज्यों । -देव वे नद चाहतु सिंधु भये अब सिंधु ते ह्व हैं जरूल्यो-वि० [सं० जटिल] गभुमारे बाल वाले। जलाहल भारे । -तोष कवि उदा० आनंदघन चिरजीवौ महरि को जीवन-प्रान जलूलत-वि० [अ० जलालत] तेज । __जरूल्यौ हो। -घनानंद उदा० फैलत अनु फूलत भरै जलूलत चित नहि जरैलुन--वि० [हिं० जलना] जलने वाले, ईर्ष्यालु भूलत रँग रँग के। -पद्माकर उदा० बोधा जरैलुन के उपहास अंगेजु कै कुँजनि जलस-वि० [फा०]१. तड़क-भड़क २. ज्योति, जाइबे ही है। -बोधा प्रकाश, चमक ३. सिंहासनारोहण, धूमधाम की जरौट-वि० [हिं० जड़ना] जड़ाऊ । सवारी । उदा० कोउ कजरौट जरोट लिये कर कोउ मुरछल उदा० १. भूषन जवाहिर जलूस जरबाफ जाल, कोउ छाता । -रघुराज देखि देखि सरजा की सुकवि समाज के । जलजाल-संज्ञा, पु० [सं०] समुद्र, सागर । ..- भूषण उदा० जलजाल काल कराल माल उफाल पार आपुही सुनार घर जाइ के जड़ाऊदार धरा धरी। -केशव जेवर जलूस के बनावने बतावती । जलथंभ - संज्ञा, पु० [सं० जलथंभ-रुकावट-1 -नंदराम For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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