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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहुँचाना प्रसार ] [प्रेक्ष असार-० विस्तार पु० फैलाव प्राथमि-वि. प्रारंभिक वि० शुरूका प्रसिद-१ि० विख्यात पु. मशहूर प्राशि-१ि० प्रदेशका पु० प्रभूति-स्त्री० जनन क्रिया स्त्री० प्राधा-4-10 प्रधानता स्त्री० खासियत प्रता२-पु. विस्तार पु० फैलाव प्रारत-वि० मिला हुआ वि० प्रस्ताव-पु. प्रारंभ पु. शुरुषात; प्राप्ति-स्त्री. लाभ पु० फायदा दरख्वास्त प्रासय-१० प्रपलता स्त्री० जोर प्रस्तुत-वि. उपस्थित पु० हाजिर प्रामाणि-वि० प्रमाणभूत वि० सध्या प्रस्थान-न• प्रयाण पु. मार्ग श्रिमानदार ५३६- स्वेद पु० पसीना प्रायश्चित-10 पाप निवारण के लिए ५४२- पहरका समय पु० पश्चाताप पु० ४२५-1. प्रहार करना पु० चोट प्रा२५५-१० भाग्य पु० नसीब प्राम-पु. आरंभ पुं० शुरुआत प्रसन-1. हाभ्य प्रधान नाटक पु० प्रायना-स्त्री. विनय स्त्रो० अर्ज, ईश्वर प्रहार-. फटका पु० चोट स्तुति प्रात-१० प्रकृतिजन्य पु० अमली प्रापी९य-1. प्रवीणता स्त्री० होशियारी एक प्राचीन भाषा प्रास-पु. भाला पु० नेचा प्राय-स्त्री० पूर्व दिशा स्त्री० प्रास-वि० प्रसंगात्मक वि० मौकेका, प्राचीन-५० पुराना पु० क़दीम कमी कभी प्राग-वि० बुद्धिशाली पु० अक्लमन्द प्रासा-पु. राजभवन पु० महल प्राय- जीव पु. जीवनशक्ति प्रारतावि-१ि० प्रावेशिक वि० शुरूका आयात-१ि० मारनेवाला पु० प्रति-पु. प्रदेश पु० सुषा प्राणायाम-पु. एक यौगिक क्रिया- प्रांतीय-१ि० प्रांत-सम्बन्धी वि० प्राणायाम पु० प्रिय-वि०.०९० मनपसन्द वि० प्यारा, Y-10 जीवन निमार पु० | कल्याण आयात- मृत्यु स्त्री० मौत श्री-स्त्री० पहिचान स्त्री० प्रातम-10 प्रातःकालीन नित्यकर्म प्रीत-स्त्री. प्रौति स्त्री० मुहब्बत श्रीमीयम-न० बीमाकी किश्त स्त्री० प्रात:स्नान-10 प्रातःकालका १९.२० For Private and Personal Use Only
SR No.020601
Book TitleRashtrabhasha Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahityaratna
PublisherVora and Company Publishers Limited
Publication Year1950
Total Pages221
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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