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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सपूर ( ७२० ) सप्तमों सपूर-क्रि०वि० बल पूर्वक । -वि० पूर्ण, पूरा, समस्त । सपूरण-देखो 'सपुरण' । सपेखरगो (बो)-देखो 'सप्रेखणो' (बो)। सपेत (ब)-देखो 'सफेद' । सपेती (दो)-देखो 'सफेदी' । सपेतो (दो)-देखो 'सफेदो' । सपेलड़ो, सपेलो-वि० (स्त्री० सपेलड़ी, सपेली) सर्व प्रथम । ___सब से पहला। सपोतरी-पु० १ सुपुत्र । २ वंशज । सपोसय-वि० पुष्ट । सपौड़ी-पु० १ घोड़ा, पश्व । २ गधा । ३ खच्चर, टटू। सपोचो-वि० (स्त्री० सपोची) १ शक्तिशाली । २ साहसी । ३.हिम्मत वाला, सामर्थ्यवान ।। सप्त-वि० [सं०] सात ।-पु० सात की संख्या व अंक, ७ ॥ -तत्री-स्त्री० सात तारों की वीणा ।-दीधिति-स्त्री. अग्नि, प्राग ।-दीप-पु० जबू, प्लक्ष, शाल भक्ति, कुस, क्रौंच, शाक तथा पृष्कर द्वीप ।--दीपा, द्वीपा-स्त्री० पृथ्वी, भूमि ।-धातु-पु. शरीरस्थ-रक्त, पित्त, मांस, वसा, मज्जा, अस्थिं और वीर्य ये सप्त द्रव्य । सोना, चांदी, तांबा, लोहा, सीसा, वग और जस्ता-सप्त खनिज पदार्थ ।-नागपु० अनंत, कर्क, महापद्म, पदम, शख, कुलिक प्रादि सात प्रमुख नाग । -- पाताळ-पु० प्रतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल ।-पुरी-स्त्री. अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन और द्वारकापुरी। --- भुवन 'सप्तलोक' ।-भोमियो-वि० सात मंजिल या खड वाला।-रसि,रिसी-पु० गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वसिष्ठ, कश्यप और प्रत्रि । उत्तरी ध्र व के सात तारों का समूह ।-वाहण, वाहन-पु० सात घोड़े या सात मुख के घोड़े वाले सूर्य देव ।-सती-स्त्रा० सात सौ पदों का समूह। सप्तक-पू० [सं०] १ संगीत के अन्तर्गत सात स्वरों का समूह । २ मात वस्तुओं का समूह । सप्तकी-स्त्री० [सं०] १ स्त्री की करधनी। २ सात लड़ की माला या करधनी। सप्तकोसी-स्त्री० [सं० सप्तकोशी] नेपाल की एक नदी। सतगंगा-स्त्री० [सं०] एक पुण्य स्थल ।। सप्तजिह्व (जिह्वा)-स्त्री० [सं०] १ अग्नि की सात जिह्वाएँ । २ पग्नि, प्राग। सततंतु-पु० [सं०] यज्ञ, हवन । सप्तपदी-स्त्री० १ विवाह में चतुर्थ फेरे के बाद वर द्वारा वधू के दाहिने कन्धे पर हाथ रख कर वेदी के उत्तर की तरफ ईशान कोण में एक-एक पद आगे बढ़ाने की क्रिया । यह मित्रता बढ़ाने के लिये सात पावड़े भरता है, जो विश्व की सात परिधियां हैं । इसके प्रागे परम तत्त्व प्राप्त होता है। सप्तपदी के बाद वधू को वामांग में लाने के लिये उत्तर प्रत्युत्तर व स्वीकृति के बाद वामांग दिया जाता है। वैदिक मतानुमार सप्तपदी के निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया हैं। यह क्रिया गृहस्थ जीवन में कत्र्तव्य बोध की भावना से की जाती है।-प्रथम कर्तव्य (पग)-घर में प्रश्न भोजनादि की व्यवस्था रखना ।-दूसरा पग-भोजन को रुचिपूर्ण व बल वर्धक बनाना ।-तीसरा पग-रायस्योषाय-गृहस्थ में अन्न व बल के साथ धन की व्यवस्था एवं ज्ञान होना चाहिये । -चौथा पग-पन्न-बलादि के सदुपयोग का ज्ञान हो ताकि जीवन सुखमय हो -पांचवांपग-संतान प्राप्ति व उसके भरण -पोषरण की समुचित व्यवस्था ।-छठा पग-ऋतुओं के अनुसार रहन-सहन व खान-पान ।- सातवां पग-घर में परस्पर प्रेम एवं मित्रता की भावना हो। इससे पूर्व नव वर-वध से सात प्रकार के होम (संकल्प) करवाये जाते हैं, जो अग्नि की साक्षी में "वसुधैव कुटम्बकम्" की भावना के लिये होते हैं । (१) राष्ट्रभृत होम-राष्ट्र के भरण-पोषण की भावना । (व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र) प्रतः गृहस्थ' राष्ट्रीय जीवन में इकाई रूप है ।(२)जयाहोमजीवन के प्रति माशावान होना । (३) अभ्यातन होम-सतत उन्नति की भावना । महत्वाकांक्षा (४) अरिष्टनाशन होमजीवन मे पाने वाली अपघातिनी व विघ्नकारक शक्तियों को दूर करने की भावना । (५) व्याहृति होम-मन, कर्म व वचन से विश्व कल्याण का संकल्प रखना । (६) लाजा होम-स्त्रो के लिये पति के वश की वृद्धि, घर में समद्धि के लिए कामना करना व कभी पृथक न होने की भावना रखना । (७) प्राजापत्य होम-प्रजापति के प्रति कृतज्ञता की भावना । २ वर-वधू द्वारा विवाह वेदो के की जाने वाली सात परिक्रमा, भांवरी। सप्तपदीपूजन, सप्तपदीपूजा-पु० १ विवाह के समय का एक पूजन । २ बास । सप्तपरव, सप्तपाव-पु० [सं० सप्तपर्वन् ] बांस । सप्तम-वि० सातवां । सप्तमात्रका (मात्रिका)-१ देखो 'मात्रका'। २ देखो 'माया'। सप्तमी-स्त्री० [सं०] मास के किसी पक्ष की सातवीं तिथि। सप्तमुख -पु० [सं०] यज्ञ, हवन । सप्तमी-वि० [सं० सप्तम्] (स्त्री० सातवीं) छः के बाद वाला, सातवां । For Private And Personal Use Only
SR No.020589
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1987
Total Pages939
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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