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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संहार लेकार - स्त्री० १ लयपूर्ण ध्वनि । २ मधुर ध्वनि । पु० लों-देखो 'लौं' | [सं० लय-कार) २ विनाश, संहार 'को-देखो 'लकी' । संव-देखो 'लेख' । लेचाळ स्त्री० १ तलहटी । ३ डिंगल का एक छंद ( गीत ) । लंची स्त्री० चारण कुलोत्पन्न एक देवी जो-देखो 'लो' । लेखदार - वि० लेण - स्त्री० १ तुरंत की ब्याई हुई गाय । २ मृत्युभोज के साथ सगे संबंधियों को दिया जाने वाला लोटा, बर्तन आदि । - वि० बेचारी । ० ऋण वाला । www.kobatirth.org ( १४३ ) गो-दंगो पु० १ तालुक, मतलब संबंध २ लेन-देन । संग-दंग-देखो ''न-देन' संगार, लेखियार वि० लेने वाला। लैगियो, लखौ - पु० १ लाभ, फायदा । २ कर्ज, ऋरण । ३ हित, मलाई लेगो (बौ) - क्रि० १ ल ेना, प्राप्त करना । पाना । २ खरीदना, मोल ल ेना । ३ हस्तगत करना, ग्रहण करना । ४ कहीं ले जाने के लिये साथ रखना । ५ अधिकार या कब्जे में करना । ६ सेवन करना, खाना । ७ पहुंचना करना । ९ पूछना, राय मांगना । उपयोग लेरवार - देखो 'लहरदार' । - देखो 'तारे' राणो (बो) - देखो 'लहराणी' (बो) । लैम-पु० थोड़ा समय, पल, किंचित समय । संरक्रि० वि० १ करते हुए २ पीछे ३ देखो 'बहर' । लरको, लेण्ड़ो-देखो 'लहर' । लेरिया - देखो 'लारै' । संरियो-देखो 'सहरियो । ले' रौ- देखो 'लहर', 'लहरियो' । देखो 'ना'। - देखो 'लहरियो' । लोइयो - पु० कच्चा तरबूज, मतीरा । देश-देखो 'लेन-देन। बाकी हो । २ मांगने वाला । ३ लेने वाला । लगायत लेखायती - वि० १ ऋणदाता । जिसका ऋण देना लोई - स्त्री० १ गंदे हुए घाटे की लंबी बेल, लोथ । २ स्त्रियों के प्रोढने का ऊनी वस्त्र विशेष । ३ प्रसव के बाद जच्चाबच्चा के की जाने वाली मालिश । ४ संत कबीर की पत्नी का नाम । ५ देखो 'बोबी' । ६ देखो 'बोही' | ७ देखी 'लोक'। लहाणी (बी) - देखो 'लहलहाणी' (बो) । लेली स्त्री० एक प्रकार की चिड़िया । लैस पु० १ लंबी नोक वाला एक बाग विशेष । २ भाला । ३ कपड़ों पर लगाने का बेल बूटेदार फीता । वि० पूर्ण सुसज्जित एवं तैयार । लोक-स्त्री० १ लचक । २ देखो 'लांक' । लोंगी- देखो 'लू'गी' | लॉबी-देखो 'सू'दी'। लो पु० [१] मोह२प्रीति ४ मिला। लो' - देखो 'लोह' । लोथड़ी-देखो 'बोबी'। लोधरण, लोधखडो-देखो 'लोचन' । लोइ-१ देखो 'लोक' । २ देखो 'लोई' । लोइरण- देखो 'लोचन' | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लो-देखो 'लोहीभाण' । लोईयाळ-वि० रक्त से भरा हुमा, रक्तपूर्णं । लोकंजन पु० एक प्रकार का कल्पित अंजन । लोकलाज लोक, लोकड़ौ पु० १ संसार, जगत । २ समाज । ३ मनुष्य, व्यक्ति । ४ प्रजा, जनता । ५ सेना, फौज । ६ वह स्थान जिसका बोध देखने से होता है । ७ मृत्युलोक, नागलोक प्रादि स्थान ८ पुराणानुसार जीव के मरणोपरान्त जाने का स्थान । ९ नागरिक । १० परिजन, परिग्रह । ११ दल, समूह | साथ । १२ कृषक, किसान। १३ पति, स्वामी । १४ बतख की तरह एक पक्षी विशेष । १५ सात व चौदह की संख्याई पु० ब्रह्मा धारणी, धारिणी स्त्री० पृथ्वी भूमि । नाथ पु० ईश्वर, राजा नृप। पत पता, पति, पती- पु० ब्रह्मा । ईश्वर, प्रभु नृप, राजा । पाळ, पाल पु० राजा नृप। ईश्वर, प्रभु ब्रह्मा । — बंधु, बंधू - पु० सूर्य, भानु शिव, महादेव । - बळ - पु० जन शक्ति । माता स्त्री० जगत्जननी, लक्ष्मी । - पितामह - पु० लोकचख पु० [सं० लोक -चक्षु] सूर्य, भानु । लोकधुन, लोकधुनि-स्त्री० जनश्रुति । धफवाह, जनरव । लोकनीत (नीति) - स्त्री० [सं० लोकनीति ] पुरुषों की ७२ कलाधों में से एक । For Private And Personal Use Only लोकलाज-स्त्री० लोक या समाज के प्रति लज्जा या सम्मान अथवा शिष्टता का भाव ।
SR No.020589
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1987
Total Pages939
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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