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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयरा ( ४५२ ) जरघर जयरणा-स्त्री० [सं० यत्ना] १ चेष्टा, प्रयत्न कोशिश । (जैन) माता का नाम। (जैन) १३ चौथे चक्रवर्ती की मुख्य स्त्री। २ प्राणी की रक्षा। (जैन) ३ हिंसा का परित्याग । १४ एक प्रकार की मिठाई ।-वि० विजय दिलाने वाली। ४ दया । ५ विवेक । ६ उपयोग । (जैन) -क्रि० वि. जब, जिस वक्त, यदा। जयत-पु० १ जयघोष, जयध्वनि । २ जय-विजय । जयार-सर्व० जिनका । -क्रि० वि० १ जब । २ तक, पर्यन्त । जयतसिरी-देखो 'जयसी'। - मयार-पु० 'ज' कार 'म' कार । अपशब्द । (जैन) नयती-देखो 'जयंती'। जयावती-स्त्री० १ एक स्कन्द मातृका । २ एक रागिनी विशेष । जयदेव -पु. गीत गोविन्द के रचयिता एक प्रसिद्ध संस्कृत कवि। जयी-पु० [सं० ययी] १ शिव । २ घोड़ा । ३ मार्ग, रास्ता। जयद्दह (दत्य, द्रथ, द्रथि, पू. द्रश्य)-पु० [सं० जयद्रथ] ४ अश्वमेध का घोड़ा। दुर्योधन का बहनोई व सिंधु देश का राजा। जयु-पु० [सं० ययु] अश्वमेध का घोड़ा। जयध्वज-पु० [सं०] जयध्वजा, पताका, जयंती । जयेत-पु० [सं०] एक राग विशेष । -गोरी-स्त्री० एक संकर जयनी-स्त्री० [सं०] इंद्र की कन्या । रागिनी । जयनेर-पु० जयपुर नगर। जयोड़ो-देखो 'जायोड़ो' (स्त्री० जयोड़ी) जयपत्त , जयपत्र-पु० [सं०] १ पराजित राजा द्वारा विजयी जयौ-पु० 'जय हो' का अभिवादन । राजा को लिखा जाने वाला पत्र । २ अश्वमेध यज्ञ के अश्व | जरंत-पु० भैंसा, महिष। के ललाट पर बंधा रहने वाला पत्र । जरंद-पु० १ प्रहार, चोट । २ प्रहार की ध्वनि । ३ किसी के जयपाळ-पु० [सं० जयपाल] १ जमाल गोटा । २ विष्णु । गिरने से उत्पन्न ध्वनि । ३राजा । जरंदी-वि० हजम करने वाला। -पु० १ एक ध्वनि विशेष । जयप्रिय-पु० [सं०] एक प्रकार की ताल । २ दुसाला । ३ उपयोग। जयमंगळ-पु० [सं० जयमंगल] १ विजयी राजा की सवारी का जर-स्त्री० १ चम्मचनुमा चलनी। २ धन,सम्पत्ति । ३ गर्भस्थ हाथी। २ ताल का एक भेद । ३ शुभ रंग का एक बालक पर रहने वाली झिल्ली। ४ वृद्धावस्था। ५ सोना, घोड़ा विशेष । ४ ज्वर की एक औषधि । स्वर्ण। ६ लोहे का मुरचा । ७ ज्वर । जयमल्लार-पु. सम्पूर्ण जाति का एक राग । जरई-स्त्री० अंकुर निकले हुए धान के बीज । जयमाताजी-स्त्री० शाक्त लोगों का एक अभिवादन । जरक-स्त्री० १ मोच, चोट । २ खरोंच, धाव । ३ प्रहार जयमाळ (माळा)-स्त्री० [सं० जयमाला] १ विजयी राजा को | की ध्वनि । ४ स्वर्ण खण्ड । ५ देखो 'जरख'। पहनाई जाने वाली माला । २ स्वयंबर में किसी पुरुष को जरकणी (बी)-क्रि. १ मोच पड़ना, चोट लगना । २ खरोंच वरण करके स्त्री द्वारा पहनाई जाने वाली माला । लगना, घाव पड़ना। ३ प्रहार की ध्वनि होना । ४ गिरना। जयरामजी-स्त्री० एक अभिवादन विशेष ।। जरकस (कसिया), जरकसी (सौ, स्स)-वि० १ स्वर्ण मंडित । जयवंत, जयवत-वि० [सं०] विजयी, जीता हुमा । २ स्वर्ण तारों में से युक्त । जयसंधि-पु० [सं०] पुडरीक राजा का एक मंत्री। (जैन) जरकारणौ (बी), जरकावरणौ (बी)-क्रि० १ मारना, पीटना । जयसद्द-पु० जयध्वनि । २ जमकर खाना । ३ प्रहार करना। जयसायर-पु० [सं० जयसागर] एक मुनि का नाम । (जैन) जरकी-वि० १ कायर, डरपोक । २ देखो 'जरक' । जयस्तंभ-पु० [सं] विजय स्तम्भ । जरको (क्क)-देखो 'जरक'। जयस्री-स्त्री० [सं० जयश्री] १ विजयश्री, लक्ष्मी । २ संध्या जरख (रुख)-पु० [सं० जरक्ष] लकड़बग्घा । -बाहरणी-स्त्री. ___ समय की एक रागिनी । ३ ताल के साठ भेदों में से एक । डाकिनी, चुड़ल । जरखेज-वि० [फा०] उपजाऊ, उर्वरा । जयहाथ-पु० [सं० जयहस्त] अर्जुन । जयहार-पु० विजय माला। जरगारखांना-पु० राजा-बादशाह या शासक का हीरे-जवाहरात, जया-स्त्री० [सं०] १ दुर्गा । २ पार्वती। ३ हरी दूब । प्राभूषणों का भण्डार। ४ हरीतकी, हरड़ । ५ दुर्गा की एक सहचरी। ६ ध्वजा, जरग्ग-वि० [सं० जरत्क] १ जीर्ण, पुराना । २ देखो पताका । ७ तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी की तिथियां । 'जरग्गव' । ८ माघ शुक्ला एकादशी। यमुना नदी। १० सोलह । जरगव-पु० [सं० जरगव] १ लकड़बग्घा । २ बुढा बैल । मातृकाओं में से एक । ११ भाग । १२ बारहवें तीर्थंकर की । जरघर-पु० स्वर्णकार, सुनार । For Private And Personal Use Only
SR No.020588
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1986
Total Pages799
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size20 MB
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