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________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केररोटी ( २५७ ) केसट केरांटी (ठी)-देखो 'केरंटी'। केवट-वि० १ निभाने वाला । २ संभालने या बटोरने वाला। केरा-प्रव्य० १ संबंध सूचक अव्यय का, के । २ जैसा, समान । ३ सुधारने वाला। ४ चतुराई से काम लेने वाला। केरी-स्त्री० १ कच्चा आम । २ जुलाहे की एक लकड़ी। ३ निवार लपेटने की एक लकड़ी । -अव्य० संबंध सूचक केबडीग्राळी-देखो 'कबडाळो' । शब्द, की। केवडी-देखो 'केतकी'। केरु, केरू-देखो 'कौरव' । केहड़ी-स्त्री० १ मिट्टी का बना छोटा पात्र विशेष । २ मिट्टी का | केवडो-वि० (स्त्री० केवडी) कितना, कैसा । बना रोटी पकाने का तवा । केवत-स्त्री० यश-अपयश। कहावत । केरे-देखो 'कर'। केवळ-पु० [सं० केवल] १ विष्णु । २ श्रीकृष्ण । ३ कल्याण, केरौ-प्रव्य० संबंध बोधक अव्यय । -सर्व० किसका। मोक्ष । ४ सर्व श्रेष्ठज्ञान । ५ एक छंद विशेष । केळ-पु० १ भाला । २ कामदेव। -स्त्री० [सं० कदली] १ केले -वि०१ विशिष्ट । २ एक मात्र, अकेला । ३ अद्वितीय, का वृक्ष व फल । २ किसी वृक्ष की शाखा, डाली। ३ केले बेजोड़ । ४ समस्त, समूचा । ५ बिना ढका, खुला । का चित्र । ४ कोंपल । ५ देखो 'केळि' । ६ शुद्ध, साफ। ७ अमिश्रित । -अव्य० [सं० केवलम्] केलड़ी-स्त्री० मिट्टी का तवा । सिर्फ, मात्र, फकत । -गत, गति-स्त्री० चार प्रकार केळरसक्यारी-स्त्री० काम क्रीड़ा का साधन, योनि । की मुक्तियों में से एक ।---ग्यांणी (नी)-पु० कैवल्य ज्ञान केळवरणौ (बी)-क्रि० १ सुधार करना । २ शुद्ध करना। प्राप्त महात्मा । २ निकटस्थ और दूरस्थ रहते हुए भी केळवर-पु० [सं० कलेवर शरीर, देह, ढांचा। अन्य की प्रकृति को जान लेने का ज्ञान (जैन) । केळा, केळि. (ळी)-स्त्री० [सं० केलि] १ स्त्री प्रसंग, संभोग, | --यांन-पु० आत्म-परमात्म संबंधी ज्ञान । दुःखों की रति क्रीड़ा । २ क्रीड़ा, खेल । ३ मनोरंजन, आमोद- निवृत्ति । निरहंकार की भावना । अद्वितीय ब्रह्म भाव प्रमोद । ४ हंसी-मजाक । ५ हर्ष, खुशी, आनन्द । ६ पृथ्वी। की प्राप्ति । ७ एक प्रकार का घोड़ा । —प्रभ-पु० केले का तना। केवळी-पू०१ केवल ज्ञानी । २ ब्रह्मात्म ज्ञानी । ३ मुक्ति का -ग्रह-पु० रतिगृह, शयनागार । क्रीड़ा स्थल । अधिकारी । ४ तीर्थंकर और सिद्ध भगवान (जैन)। केळिनि (नी)-स्त्री० [सं० कदली] केले का वृक्ष तथा फल। । -विधिकळा-स्त्री० बहत्तर कलाओं में से एक । केळियो-पु० १ छोटा शमी वृक्ष । २ अंकुर निकला हुअा छोटा केवांरण, केवाणी-देखो 'ऋपाण' । पौधा। केवा-स्त्री. १ आपत्ति, दुःख, कष्ट । २ द्वेष, शत्र ता । ३ कमर, केळिहर-पु० [सं० केलिगृह] केलिघर । कमी । ४ दोष, अवगुण । ५ कलंक । ६ कहावत । ७ युद्ध केळू, केळूडो-देखो 'केळौ'। झगड़ा । ८ दंगा, फिमाद । ९ कलह । केलू, केलूडो (रो)-पु० खपरैल । केवाड-देखो 'कपाट' । केळी-पु० [सं० कदली] १ केले का वक्ष या फल । २ छोटा | केवाट-पु० सिं० किवृत्तम्] १ वृत्तांत, हाल । २ समाचार, शमी वृक्ष । केवडो-पु. १ खुशबुदार सफेद फुलों वाला पौधा । २ इसका | केविय, केवी(बी)-पु० शत्र । -क्रि०वि० कैसी।-वि० कोई भी। फुल । ३ इसके फूलों का पासव, केवड़ा जल । ४ एक केवी-पु० १ प्रतिकार, बदला, वैर । २ देखो 'केवा' । लोक गीत। | केस-पु० [सं० केश] १ बाल । २ अयाल । ३ जानवरों के केवट-पु० [सं० कैवर्त] १ भल्लाह, नाविक । २ एक वर्ण- बाल । ४ विश्व । ५ सूर्य । ६ विष्णु। ७ केशी नामक संकर जाति । दत्य । --काट-पु० नाई, नापित । -कार-पु० बाल केवटणी (बौ)--क्रि० १ निभाना, निर्वाह करना । २ बटोरना, संवारने वाला 'हज्जाम । -बाळ, बाळी-स्त्री० घोड़े की संभालना । ३ चतुराई से काम लेना । ४ मांस को कमा गर्दन के बालों के पंक्ति । घोड़े की गर्दन का जालीनुमा कर तैयार करना । ५ देखभाल, हिफाजत करना। प्राभूषण । -मारजन-पु० कंघा । ६ मितव्ययता करना। केसट--पु० [सं० केशट) १ कामदेव का एक बाण । २ विष्णु । केवटियो-देखो 'केवट' । ३ भाई। ४ बकरा । ५ खटमल । खबर। For Private And Personal Use Only
SR No.020588
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1986
Total Pages799
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size20 MB
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