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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ सेवा में भेजी जावे, परन्तु मैं स्वयं अंग्रेज़ी विद्या से अनभिज्ञ होनेसे ऐसा नहीं कर सकता हूं । अतः स्वजातीय अंग्रेज़ो के त्रिद्वानों से प्रार्थना है कि वे कृपाकर इस पुस्तक का अंग्रेज़ी में पूर्ण अनुवाद वा ममानुवार्द ही बनाकर मेरे पास भेजने की कृपा करें। (१२) पाठकों से प्रार्थना स्वजातीय सज्जनों से यह भी प्रार्थना है कि जब तक इस पुस्तक की दूसरी आवृत्ति छपवाकर समस्त देशों में प्रत्येक पुकरणे ब्राह्मण के पास नहीं पहुंचाई जाय तब तक जिनके पास यह पुस्तक पहुँचे वे केवळ आपही पढ़के न रख दें किन्तु जिनके पास पुस्तक न पहुंची हो उनको भी पढ़नेको दें अथवा आपही उन्हें सुना दिया करें जिससे सब लोग इसके विषयों से अभिज्ञ ( जानकार ) हो जावें । (१३) नरेशोंका उपकार व उनकी मंगल कामना अन्त में समस्त पुष्करणे ब्राह्मणों को जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, कृष्णगढ़, जयपुर, उदयपुर, बूँदी, कोटा, ईंडर, रतलाम, झाबुआ, सीतामऊ, नरसिंहगढ़, इन्दोर, बड़ौदा, भुज, पटियाला - इत्यादि रियासतों के श्रीमान् नरेशों को अनेक धन्यवाद देना चाहिये कि जिनके सुराज्यों में पुष्करणे ब्राह्मणों का सदा सन्मान व सत्कार होता आया है । आशा है कि श्रीमान् आगे को भी सर्वदा अपने पूर्वजों का अनुकरण करते ये अपनी इस शुभ चिन्तक जाति का वैसा ही सत्कार करते रदेंगे । इसी प्रकार श्रीमती भारत गवर्मेण्ट का भी उपकार मानना चाहिये कि जिसके शान्तिमय शासन काल में हम सब अपने२ कर्त्तव्य स्वतन्त्रता पूर्वक कर सकते हैं। श्री जगदीश्वर से प्रार्थना है कि वह उक्त श्रीमानों का सदा अखण्ड प्रताप बनाये रखे । For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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