SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ तगमा (मेडल ) मिलने के लिये किया है, और न कोई प्रशंसा पत्र पाने के लिये किया है और न इसकी विक्री करके धन क माने ही के लिये किया है। यदि मुझे धनही का लोभ होता तो इस पुस्तक की बहुत अधिक प्रतियें छपवाकर कमसे कम || ) | ) में भी बेच देता तो भी २०००) ४०००) रुपये तो मिल ही जाते । परन्तु मैंने यह परिश्रम किसी भी प्रकारकी स्वार्थ ह टिसे नहीं किया है, किन्तु किया है केवल हमारे सजातीय पूर्वजों की महान् कीर्त्तिको प्रगट करनेके लिये। अतः जो कुछ समय, परिश्रम, और द्रव्य इस पुस्तक के प्रथम निर्माण करने में लगने की जो आवश्यकता थी वह तो मैं लगा चुका, उसी का फल स्वरूप यह पुस्तक समग्र पुष्करणे ब्राह्मणों की सेवामें भेट किई है । यदि मेरा यह परिश्रम आप महाशयों को पसन्द आया तो पूaa 'पुष्करणोत्पत्ति' नामक विस्तार पूर्वक महान् पुस्तक जो इससे भी अधिक परिश्रम द्वारा अभी में बना रहा हूं शीघ्र ही प्रकाशित करके इसी प्रकार स्व जातिकी सेवामें भेंट करने की पूर्ण इच्छा रखता हूं । परन्तु इसके साथ आपको यह भी जानना चाहिये कि यह कार्य कोई मेरे अकेले हो का नहीं है, किन्तु सम्पूर्ण जाति भरका है । अतः उक्त पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाने और शीघ्र प्रकाशित कराने के लिये जाति भरके समस्त महानुभावों को भी कुछ उद्योग करके उक्त पुस्तक के उपयोगी -प्रत्येक भाग की पूर्ति करने योग्य लेख आदि भेजकर मेरे परिश्रम में सहायता पहुंचानी चाहिये । (११) इस पुस्तक के अंग्रेजी अनुवादकी आवश्यकता - इसके अतिरिक्त मैं यह भी चाहता हूं, और यह है भी आवश्यक, कि इस पुस्तक को अंग्रेज़ी में प्रकाशित कराके भारत गवर्मेण्ड के ऐतिहासिक तथा मनुष्य गणना आदि विभागों की For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy