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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૭ सम्बन्ध प्रायः होता ही है । यदि यह बीचका भेद निकाल कर सब के साथ एकसा व्यवहार प्रचलित कर दिया जाये तो पुष्करणों के लिये क्या ही उत्तम हो। पुष्करणे ब्राह्मणों की स्थिति । ब्राह्मणोंका मुख्य भूषण सन्तोष है। पुष्करणे ब्राह्मण भी सदासे सन्तोषी तथा निस्पृही (निर्लोभी) होते आय हैं । सैकड़ों वर्ष पहिले जब इनके पूर्वज सिन्ध देश में निवाम करते थे तब वहां की प्रधान नगरी व इनके यजमान राजाओं की प्रधान र. जधानी 'आलोर' वा 'आगेर' में भी अधिकतासे वमते थे। वहां के सभी मनुष्य १२५ वर्ष से भी उपरकी आयुके वृद्ध होने पर भी हष्ट, पुष्ट और बलिष्ट होते थे। यह सब उनके ब्रह्मचर्य और नियमित रूपसे जीवन चर्या निर्वाह करने का फल था । वहांके युवा पुरुष अपना सब कार्य अपने ही पौरुषके साथ सम्पादन करते थे। उन्हें किसी सेवक (नौकर) के सहारे जीवन बिताने को धान ( आदत ) वा आवश्यकता नहीं थी, और इसीलिये उस देश में दास दासी (गुलाम ) बनाने की प्रथा नहीं थी ।* वेध घोका भोजन अधिक करते थे। वे बड़े दूर दर्शी व देश काळके पूर्ण ज्ञाता होने से सबके भले में अपना भला समझने थे। वे जाति मर्यादा के भी ऐसे पक्के थे कि साधारण से साधारण नियमका भी उल्लङ्घन नहीं करते थे । उस देश में दीवानी मु. * इस समय भी पुष्करणे ब्राह्मणों में राज्य कुलाचार्य-पुरोहित वा गुरु तथा राज्य मुसाहिब आदि राज्य मान्य व श्रीमन्तों की कमी नहीं है, तथापि इनके यहां दास दासी (गोले गोली) रखने की प्रथा नहीं है। - - For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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