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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - यद्यपि देश भेदमे इनके समुदाय तो पृथकर हो गये हैं त. थापि इन सबके आचार विचार, खान पान आदि सम्पूर्ण व्यवहारों में अपनी 'द्राविड़ सम्पदाय' के अनुकूल जाति मर्यादा जो इनके प्राचीन निवासस्थान सिन्ध देशमें थो उसी मर्यादाका पालन अब भी सर्वत्र ही एकहीसा होता है। इसी लिये इन सब में परस्पर एक दूसरेके साथ भोजन व्यवहार रखने में तो कोई भी आपत्ति नहीं करता है। हां बहुत दूर देशोंके कारण आने जाने में अमुविधा तथा आपसमें परिचय न रहनेसे खुल्लम खुल्ला कन्या देने में अलबत्ता संकोच करने लग गये हैं (जैसाकि अन्यान्य ब्राह्मणों में भी होता है। किन्तु विचार करके देखा जाये तो परोक्ष रुपसे तो कन्या देने लेने का व्यवहारभी सभी समुदायों के साथ सदासे चला आता है । जैसे:___मिन्धियोंका कच्छी, पञ्जावी तथा घाटियों के साथ; कच्छि. या सिन्धी, गुजराती, खानदेशी तथा धाटियोंके माथ; गुजरा. तियोंका कच्छी, सिन्धी तथा खानदेशियोंके साथ; खानदेशियों का गुजराती, कच्छी तथा सिन्धियों के साथ; पञ्जावियों का सिन्धियोंके साथ; धाटियों का सिन्धी, कच्छी तथा मारवाड़ियों के साथ; और मारवाड़ियोंका धाटियों के साथ कन्या देने लनेका ____ * पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति मर्यादानुसार एक तो हत्यारा ( मनुष्य मारनेवाला) और दूसरा नालभ्रष्ट ( मद्यमांस आदि अभक्ष्य खानेवाला वा अ. न्य जातिके साथ भोजन करनेवाला ) जातिमें नहीं रह सकता औरन उसके साथ जातिका कुछ सम्बन्ध ही रहता है । जैसे:-मारवाड़में कबूतर खानेवाले और पजाबमें डेरागाजीखाके आसपासके सिन्धु पुष्करणे कहलाने वाले पु. करणे जाति मर्यादाका उल्लंघन कर देनेसे जातिसे पृथक् कर दिये गये थे मो उनकी सन्तान भी आजतक जाति से बाहर ही है। For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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