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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ने भगवान महावीर स्वामी को किये छत्तीस हजार प्रश्नों का समाधान (संग्रह) हैं। बालक स्कूल से घर आता है आते से ही माँ से खाना मांगता है क्योंकि उसे जोरों से भूख लगी है। माँ भी सारे काम छोड़कर पहले उसे खाना देती है। बस! शिष्य भी बालक जैसी तत्त्व जिज्ञासा गुरू से दिखाएं तो गुरू भी उसे ज्ञान देकर तृप्त करते हैं। देखो! महावैरागी जंबुस्वामी की तिव्र जिज्ञासा और गुरू सुधर्मास्वामी का तत्त्व/ज्ञान भोजन देने का तरीका। रायपसेणी सूत्रानुसार परदेशी राजा, जीव और शरीर को एक ही मानने वाले थे, वे भ्रमणा में भटक रहे थे। देह के नाश में आत्मा का नाश है। देह और देही को भिन्न देखने के लिए कितने ही जीवों की हत्याएं की थी। शरीर के टूकडे-टूकडे करके आत्मा की खोज की थी। परंतु अरूपी आत्मा चरम चक्षु से दिखी नहीं थी। ऐसी भ्रमणा में जी रहे परदेशी राजा को केशीस्वामी जैसे सद्गुरू का योग मिलने से भ्रमणा तूट गई थी और वे आध्यात्मिक रंग में रंग गये थे। फिर वे परदेशी मिटकर स्वदेशी बन गये थे। मुझे भी आपसे यही कहना है कि जिज्ञासु बनिये, जिज्ञासा हृदय की गइराई से उत्पन्न हो तो ज्ञानदाता गुरू मिल ही जाऐंगे। धूप लगती हो तो आदमी छांव ढूंढ़ ही लेता है। आदमी को ज्ञान की नहीं जिज्ञासा की चिंता होनी चाहिए, भोजन की नहीं भूख की चिंता होनी चाहिए। पानी की नहीं प्यास की चिंता होनी चाहिए। प्यास होगी तो पानी मिलेगा ही, सूरज की नहीं आँख की चिंता होनी चाहिए, आँख होगी तो सूरज दिखेगा ही। भूख होगी तो भोजन मिलेगा ही। भक्ति होगी तो भगवान मिलने ही वाले हैं। आश्चर्य की बात है! आदमी को खुद में कितनी जिज्ञासा है उसकी चिंता नहीं है, अपितु ज्ञान की चिंता है!भूख की नहीं, अपितु भोजन की चिंता है। आँख की नहीं अपितु सूरज की चिंता है। भक्ति की नहीं, अपितु भगवान की चिंता है। जिज्ञासा है या नहीं? पता कैसे चलता है? भीतर से उठने वाले प्रश्नों से। प्रश्न जितने अधिक, जिज्ञास उतनी ही तीव्र मनुष्य तीन तरह से पूछ सकता है। एक कुतुहल होता है बच्चों जैसा कोई जरूरत न थी, पूछने के लिए पूछ लिया कोई प्रयोजन नहीं -84D For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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