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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (12) www. kobatirth.org 83 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वं जिज्ञासनीयं च " तत्त्व जिज्ञासा रखनी चाहिए" माना कि सिर्फ दुकान जाने से धनवान नहीं बना जाता किन्तु धनवान बनने की संभाव ना तो रहती है। सिर्फ कुए - तालाब जाने से प्यास नहीं मिटती किन्तु प्यास बुझने की संभावना तो रहती है। सिर्फ वृक्ष के पास जाने से पेट नहीं भरता किन्तु पेट भरने की संभावना तो रहती है। बस ! वैसे ही जिज्ञासा मात्र से ही ज्ञानि नहीं बना जाता परन्तु ज्ञानि बनने की संभावना तो रहती है। कोई आदमी अधिक ज्ञानि क्यों हैं? क्योंकि उसके पास जिज्ञासा अधिक थी। कोई आदमी अधिक अज्ञानि क्यों है? क्योंकि उसके पास जिज्ञासा नहीं के बराबर थी, जिज्ञासा के आधार पर ही ज्ञान मिलता है । जिज्ञासा अर्थात् जानने की इच्छा। जिज्ञासा, अंतर्हृदय से प्रकटे तो ज्ञानदाता गुरू मिल जाते है। अगर प्यास लगी है तो आदमी पानी तो कहीं से भी ढूंढ़ लेता है। ज्ञान तो सभी दिशाओं से बरसने को तैयार है, परन्तु हमारी तैयारी नहीं है। अपने अंतर्हृदय में गहरी प्यास / जिज्ञासा नहीं हैं । जिज्ञासा के बिना ज्ञान मिलता नहीं है। प्यास के बिना पानी मिलता नहीं है। भूख के बिना भोजन मिलता नहीं है। चार ज्ञान के धनी गुरू गौतम स्वामी जिज्ञासु बनकर जिज्ञासा की तृप्ति के लिए बालक की तरह रहे निर्दोष भावों से अंजलीबद्ध हो कर प्रभु को पूछ रहे थे। प्रभु! आपने मुझे तीन लोक का स्वरूप समझाया जगत् का स्वरूप प्रस्तुत किया, देव- मनुष्य तिर्यच और नरक गति का चिंतन दिया, जीवादि नौ तत्त्वों को बखूबी समझाया। चारों गति के जीवों के दुःखदर्दों का परिचय कराया। परमविनयी गुरु गौतमस्वामी चार ज्ञान से युक्त थे फिर भी प्रभु को विनयपूर्वक प्रश्न पूछते थे और प्रभु भी हे गोयम! कहकर समाधान करते थे। ये गुरू शिष्य की प्रश्नोत्तरी श्रोताओं को धर्ममार्ग में जोड़ने और तत्त्व को समझाने का कारण बन गयी परिणाम स्वरूप सभी की जिज्ञासा का समाधान हो ऐसा एक आगम निर्मित हुआ। उस आगम का नाम है भगवती सूत्र, इस आगम में गौतमस्वामी For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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