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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org राजा श्रेणिक ससैन्य भगवान महावीर के पास जाने के लिए उसी रास्ते से गुजरे। श्रेणिक राजा ने राजर्षि के दर्शन किये और उनकी साधना की प्रशंसा की। वहाँ से आगे बढ़ते हुए श्रेणिक भगवान महावीर के पास पहुँचें । दर्शन वंदनादि करके श्रेणिक ने भगवान से पूछा-प्रभो ! इस समय यदि प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की मृत्यु हो जाए तो उन्हें कौन सी गति मिलेगी? मालुम है आपको, भगवान ने क्या कहा - सातवीं नरक । यदि अभी मृत्यु को प्राप्त करे तो प्रसन्नचन्द्र राजर्षि सातवीं नरक में जा सकते हैं। भगवान के उत्तर ने श्रेणिक को बड़े अचम्भे में डाल दिया। जब कुछ ही क्षण बाद श्रेणिक ने अपने प्रश्न को दोहराया तो भगवान ने कहा सवार्थ सिद्ध विमान में जा सकते हैं। कुछ ही पल बाद देवदुंदुभि बजी तो श्रेणिक ने पूछा प्रभु! ये क्या हुआ ? प्रभु ने कहा प्रसन्नचन्द्रराजर्षि को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । श्रेणिक के आश्चर्य की सीमा न रही। श्रेणिक की भावभंगिमाओं को निरख कर भगवान महावीर ने अपनी बात का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा-श्रेणिक ! जब तुम्हारी सवारी राजर्षि के निकट से गुजर रही थी, तब सवारी के आगे चल रहे दो सैनिकों की बातचीत राजर्षि प्रसन्नचन्द्र के कानों में पड़ी। वे सिपाही कह रहे थे। कि यह साधु वही राजाप्रसन्नचन्द्र है, जिसने अपने छोटे बेटे को राज्य-भार सौंपकर साधु जीवन स्वीकार कर लिया। उसने ऐसा करके बहुत बडी भूल की है। उस ने कायरता भरा काम कर लिया। इसके मंत्रियों ने इसके बेटे और परिवार की हत्या का षड्यन्त्र रचा है और राजकुमार अपनी जान बचाने के लिए महल छोड़कर कही भाग गया है। यह बात सुनकर राजर्षि के मन में भावों के अनेक गिरते चढ़ते आयाम उभरते हैं। वे खड़े है ध्यान में, है मुनि वेष में, शरीर की मुद्रा महायोगी जैसी बना रखी है, मगर श्रेणिक ! उस महायोगी के मन में महायुद्ध छिड़ जाता है । वे मन में ही मंत्री एवं शत्रुओं से भयंकर लड़ाई शुरू कर देते है। जब राजर्षि के पास शत्रुओं से लड़ने के लिए एक भी शस्त्र - अस्त्र नहीं बचा तो वे अपने माथे के तीखे मुकुट को उतारकर उससे लड़ने की सोचते है, पर ज्यों ही मुकुट उतारने के लिए वे अपना हाथ अपने सिर पर रखते है उसी क्षण उन्हें बोध हो 72 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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