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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खजूर दे तो लेने वाला देने वाले पर गुस्सा नहीं करता कि ये बीज क्यों दियें। वह खजूर खा लेता है बीज छोड देता है। कोई सीताफल प्रेम से देता है तो लेने वाला देने वाले पर गुस्सा नहीं करता कि ये छाल और बीज क्यो दिये । वह सीताफल खा लेता है, बीज छोड़ देता है। कोई गन्ना दे तो प्रेम से ले लेता है। देने वाले पर गुस्सा नहीं करता कि ये कचरा क्यों दिया। वह गन्ने को चूसकर कचरा फेंक देता है। आजकल मिट्टी के ग्लास में चाय देते है तो चाय देने वाले पर गुस्सा नहीं करते कि ये मिट्टी का बर्तन चाय के साथ क्यो दिया। वह चाय को पीकर ग्लास को फेंक देता हैं। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते हैं? एक आदमी मुझसे कह रहा था। यूं तो मुझे गुस्सा आता नहीं है परन्तु कोई कड़वे वचन कहता है तो आ ही जाता है। मैंने उन्हें प्रेम से कहा । तुम्हें कोई कहता है तब दो घटनाएँ घटती है उसका तुम्हे ख्याल है? किसी ने कुछ कहा तो गुस्सा आऊ आऊ हो रहा है। उस समय तुम्हें प्रभु के शब्द याद नहीं आ सकते मेरे प्रभु ने तो क्रोध करने के लिए मना किया है। अब दो निमित्त हुए। एक है सामान्य मनुष्य का वचन । दूसरा है प्रभु का वचन । क्या हम यहाँ श्रेष्ठ निमित्त को नहीं स्वीकार सकते? यह तो हुई निंदा की बात | प्रशंसा की ओर एक नया आयाम है। किसी ने साधक के किसी गुण की प्रशंसा की, साधक समझता है कि वह गुण प्रभु ने साधक को दिया है। प्रशंसा के शब्द सुनते समय उसकी आँखों से अहोभाव के अश्रू निकलते होंगे। हिन्दी के शब्दकोश में दो शब्द लगभग एक जैसे ही है। एक है ममता और दूसरा है समता, परन्तु इन दोनों में अर्थ व फल की दृष्टि से उतना ही अन्तर है जितना कि प्रकाश और अन्धकार में होता है, समुद्र और क्षुद्र तालाब में होता है। ममता का परिणाम अनन्त दुःख है तो समता का परिणाम अनन्त सुख । ममता में किसी एक के प्रति राग का भाव होता है तो दूसरे के प्रति द्वेष का। जबकि समता में तो न किसी के प्रति राग का भाव न किसी के प्रति द्वेष का भाव । ऐसी सभी भावात्मक विषमताओं से मुक्त स्वरूप वाली समता की साधना, मुक्ति की साधना है, साधुता की साधना है। अरे! मुक्ति की प्राप्ति में समता की ही प्राथमिक आवश्यकता है अन्य किसी -69 - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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