SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कि अपने आपको बुद्धिमान समझने वाला मनुष्य भी संग के सुखाभास रूप चंगुल में फँस जाता है। सुख का चोला पहनकर जड़ और चेतन का संग मानव को भ्रम में डाल देता है, तो कभी लिप्सा की ओढ़नी ओढ़कर उस मनुष्य को अपने चंगुल में फँसा लेता है। स्पष्ट शब्दों में सुख की व्याख्या करते हुए सुत्रकार महर्षि शब्दों में संक्षिप्त परन्तु अर्थ से अतीगम्भीर और सचोट सूत्र बता रहे हैं-'सर्वसंग परित्यागः सुखम्' । जहाँ संग वहां रंग और जहाँ रंग वहाँ आत्मा तंग बनती है। अगर आप सुख चाहते हैं तो एक उपाय है सुख के अन्य सभी माध्यमों को हटा दो और खुद ही माध्यम बन जाओ। याद रखो! जब तक सुख पाने के लिए एक अथवा अनेक वस्तुओं को माध्यम बनाते जाएंगे, तब तक वास्तविक सुख हमसे मीलों दूर रहेगा। और जब अन्य समस्त माध्यमों को हटाकर स्वयं (आत्मा) को माध्यम बना देंगे उसी दिन आत्मा को सुख का सागर मिल जाएगा। मुझे याद आती है, वह छोटी सी किंतु बडी ही मार्मिक कहानी। ___ उस राजा के पास अपार समृद्धि थी। भोग वैभव मिलासिता के साधनों की कोई कमी नहीं थी। सत्ता, सुंदरी और सन्मित्रों का त्रिवेणी संगम ही उसका जीवन था। सुख की कोई कमी नहीं थी और दुःख तो जरा भी नहीं था। राजा अपने शयन खंड में शय्या पर लेटे सोये थे, अचानक मध्यरात्रि में उनकी नींद उड़ गयी। रत्नों के प्रकाश से उनका शयन खंड जगमगा रहा था। सर्वत्र सन्नाटा था बिलकुल शान्ति छायी थी। अचानक राजा को अपनी समृद्धि का स्मरण हो आया और उस समृद्धि को उसने काव्य रूप देने का निर्णय कर लिया। एक और दिवाल पर एक ब्लेक बोर्ड था उसने हाथ में चौक ली और पंक्तियाँ लिखने लगा चेतोहरायुवतयः स्वजनानुकूलाः सद्बान्धवाः प्रणयनम्रगिरश्च भृत्याः। गर्जन्ति दन्तिनिवहस्तरलास्तुरगाः, काव्य के चौथे पद को पूरा करने लिए राजा प्रयास कर रहे थे परन्तु -55 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy