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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यक्ति मरता है कामनाएँ नहीं मरती । हर आदमी आशाओं की गठरी अपने शिर पर उठाकर फिर रहा है। हम सब ऐसा मानते है कि जैस जैसे सुख की सामग्री बढ़ती है वैसे वैसे सुख भी बढ़ता है। इस भ्रम में समग्र संसार फंसा हुआ है। परन्तु सच तो ये है कि जैसे जैसे सामग्री बढ़ती है वैसे-वैसे व्यक्ति की अपेक्षाएँ भी बढ़ती जाती है और ये अपेक्षाएँ ही दुःख लाती है। टी.वी., फीज, फोन, फेक्स, फियाट, फ्लाइट आपको सुख के साधन लगते है। सचमुच/वास्तव में तो ये दुःख के कारण है। फियाट या फ्लाईट में बैठने को मिल जाय तो आप आनंदित हो जाते हो, फीज मिल जाय तो ठंठा-ठंठा और कूल-कूल पानी गटा गट पी जाते हो। टी.वी. देखने को मिल जाय तो कुर्सी से चीपक कर बैठ जाते हो। परन्तु अगर टी.वी. या फियाट बिगड जाय तो उसी समय अपना सुख भाप बन कर उड़ जाता है। ये कैसा सुख? टी.वी., फोन, फियाट के हाथ में अपना सुख? हम इन्सान है या कथपुतली? फेन, फोन जैसे जड़ भी हम को नचा दे? सुखी दुःखी बना दे? तो फिर अपने हाथ में बचा ही क्या? सामग्रियों से सुख बढ़ता है, ये बिलकुल ही गलत मान्यता है। भौतिक आनंद भी कैसे बढ़ता है? सामग्री बढ़ाने से या घटाने से? देवलोक में रहे देव उच्च-उच्चतम कक्षा के देव अधिक सुखी किस प्रकार से? उपर, उपर वाले देवों के पास अधिक से अधिक सामग्री है, ऐसा नहीं है। परन्तु ज्यु-ज्यु उपर जाओगे त्युं-त्युं सामग्री कम होती जाती है। सर्वमान्य तत्त्वार्थ सूत्र के चौथे अध्याय में उमास्वातिजी महाराज कह रहे हैं। “गति शरीर-परिग्रहाऽभिमानतोहीनाः"गति, शरीर, परिग्रह और अभिमान ये चारों ही एक से बारह देवलोक में क्रमशः घटते जाते हैं। नीचे के देवलोक के देवों की गति तीव्र होती है आगे उपर बढ़ते बढ़ते अनुत्तर विमान में तो गति लगभग शून्य हो जाती है। 33. सागरोपम के आयुष्य में वे देव मात्र एक ही बार करवट बदलते है। यही उनकी गति और यही उनका हलन चलन! ति लोक/मनुष्य लोक में आना तो दूर रहा...... विमान की शय्या से नीचे उतरने का भी काम नहीं! फिर भी सुख की मात्रा सबसे ज्यादा! प्रथम देवलोक % -50 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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