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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो मैं बहुत छोटी हूँ मुझमें बहुत ज्यादा अनुभव नहीं है, मुझमें बहुत ज्यादा समझ नहीं हैं। लेकिन आप अगर कहते हैं तो मैं भी अपने मन की बात कहती हूँ। ध्यान रखना छोटी बहू बहुत हुशियार होती है लेकिन आप लोग छोटी को छोटी कहकर उसके विचारों को उसकी भावनाओं को कभी महत्त्व नहीं देते हो, घर में अगर चार बहु है तो छोटी बहू के विचारों को जरा समझना वो बहुत हुशियार होती है बडी चतुर होती है लेकिन ये दुनिया छोटे को छोटा कहकर नजर अंदाज कर देती है और छोटे को छोटा मानकर के उसे अलग कर देती है। उसके विचारों को ठुकरा देती है। इसलिए छोटी बहू ने कहा मेरे पास तो ज्यादा ज्ञान है नहीं। लेकिन आपका आग्रह है, आपका आदेश है तो मेरे ख्याल से तो आप देवी से यही वरदान मांगना और ये वरदान मांगना। देवी से कहना कि हे माँ जा रही हो तो जाओ अगर जाने का निर्णय कर लिया है तो लेकिन जाते-जाते एक वरदान दे जाओ। तो शेठ ने कहा कौन सा वरदान छोटी बहु ने कहा एक ही वरदान मांगना वो ये वरदान मांगना कि हमारे बेटों में परस्पर प्रेम बना रहे बस ये वरदान दो और कुछ नहीं चाहिए शेठ को छोटी बहू का प्रस्ताव अच्छा लगा। दूसरे दिन । जब शेठ सो गए रात में लक्ष्मी पुनः आई और कहा मांग लो। क्या वरदान मांगना हैं? शेठ ने कहा माँ देवी! वरदान और कुछ नहीं एक ही वरदान मांगना है। वर दो कि मेरे चारों ही बहू बेटों में परस्पर में प्रेम बना रहे एक दूसरे में स्नेह की भावना बनी रहे बस यही वरदान दो मुझे और कुछ नहीं चाहिए। लक्ष्मी ने सुना तो लक्ष्मी ने शेठ से कहा शेठजी मैं इस घर से नहीं जा सकती हूँ। शेठ ने कहा क्यों? लक्ष्मी बोली कि जहाँ प्रेम का बास वहीं मेरा भी निवास होता है और लक्ष्मी फिर उस घर में स्थिर हो गई। देवी ने अपने इरादे को बदल दिया और कहा कि अब आप मुझे भगाओगे तो जाने वाली नहीं हूँ। क्योंकि बहू और बेटों में प्रेम है। जहाँ प्रेम होता है वहीं देवी का वास होता है। जहाँ क्लेस कलह होता है वहां घर आई हुई लक्ष्मी भी भाग जाती है। और जहाँ प्रेम और प्यार बना रहता है वहाँ बाहर से लक्ष्मी आती है और उस घर को अपना आसरा बना लेती है। -36 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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