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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3D अपने चारों बेटों को बुलाया चारों बहुओं को बुलाया। बुलाकर के रात का वृत्तान्त उन्हें कहा और पूछा बताओं क्या मांगू? शेठ ने अपनी चारों बहुओं से कहा बताओ बेटा क्या मांग लूं! बड़ी बहु ने कहा पिताजी ठीक है अगर लक्ष्मी जाने को तत्पर है और जाने की उसने ठान ली है तो एक वरदान मांगना है एक बहुत अच्छा बंगला एक बहुत अच्छी कोठी एक बहुत अच्छा मकान मांग लो मकान रहेगा हमारे पास जीवन आराम से गुजर-बसर जाएगा हमें और क्या चाहिए। समाज में हमारा रूतबा रहेगा समाज में सम्मान रहेगा इसलिए कहें बहुत विशाल बहुत भव्य और नगर में सबसे सुन्दर एक कोठी मांगलो। दूसरी बहु से कहा बेटा तुम्हारा क्या विचार है क्या ख्याल है? दूसरी बहु ने कहा कि पिताजी ठीक है मेरा तो ख्याल थोड़ा सा अलग है मेरी बड़ी दीदी कह रही है कि एक कोठी मांग लो लेकिन कोठी मांगने से क्या होगा अगर पैसा नहीं होगा रूपया नहीं होगा संपत्ति नहीं होगी तो उस कोठी की व्यवस्था कैसे होगी, उसका रख रखाव कैसे होगा। उसका संचालन कैसे होगा? उसके लिए तो पैसे चाहिए। इसलिए पिताजी मेरी तो इच्छा है। हार्दिक इच्छा है देवी से एक ही वरदान मांगो और वो वरदान मांगो कि हमारी जो फेक्ट्री है वो फेक्ट्री चलती रहनी चाहिए। हमारा जो कारखाना है वो दिन दुगुना और रात चौगुना बढ़ते चलते रहना चाहिए उसमें कोई व्यवधान कोई बाधा न पडे अगर कारखाना चलेगा। फेक्ट्री चलेगी हमारे पास पैसा आता रहेगा और पैसा आता रहेगा तो नयीं कोठियाँ बनती रहेगी। हमारे जीवन में कोई अभाव नहीं आएगा। शेठ ने कहा ठीक है तुम्हारा भी विचार सुना। तीसरी बहु से कहा बेटा बताओ, क्या मांगना चाहिए लक्ष्मीजी से? तो तीसरी बहु ने कहा कि पिताजी मेरे विचार से तो लक्ष्मीजी से बहुत सारा गोल्ड मांग लेना चाहिए, बहुत सारा सोना मांग लेना चाहिए क्योंकि सोना बहुत बहुमूल्य है इसका भाव बढ़ता ही जाता है अगर हमारे पास रहेगा तो हमारे काम अपने आप होते जाएंगे शेठ ने कहा ठीक है। तुम्हारी बात भी मैंने सुनी। अब जो सबसे छोटी बहु थी उससे कहा कि बेटा तुम बताओ क्या मांगना चाहिए? छोटी बहु ने हाथ जोड़कर कहा पिताजी अभी - 35 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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