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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन विकास और आत्मविकास की प्रेरणा मिली, प्रेरणा लेते गए। छद्मस्थ मनुष्य चाहे कितना भी बड़ा हो जाय....... परन्तु अब कहीं से कुछ सीखना बाकी नहीं है ऐसा नहीं हो सकता। अब मुझे किसी प्रेरक या उपदेशक की जरूरत नहीं अब मुझे कुछ सीखने का बाकी नहीं है। तुम हित शिक्षा देने वाले कौन होते हो? ऐसे विचार अहंकारी को जरूर आ सकते है। परन्तु विनम्र इन्सान ऐसा कभी नहीं सोच सकता । बड़े-बड़े दिग्गजों को भी छोटे लोगों की छोटी-छोटी घटनाओं से प्रेरणा मिली है। नव दीक्षित की अपूर्व समता देखकर चंड़रूद्राचार्य को केलव ज्ञान हुआ था। स्वयं की शिष्या साध्वी मृगावती के कारण ही आर्याचंदना/चंदनबाला केवलज्ञानी बनी थी। एक साध्वीजी की प्रेरणा/टकोर से श्वेताम्बराचार्य वादिदेवसूरिमहाराज, दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र के सामने वाद करने के लिए तैयार हुए थे और उस दिगम्बराचार्य को परास्त किया था। वो हरिभद्र भट्ट! परम राजमान्य पुरोहित! ओ महावीर! तेरी देह लालित्य हष्ट पुष्ट मोटा-ताजा शरीर ही कह रहा है कि तुने हमेशा माल-मलिदा उडाया है , कोई तप नहीं किया है, कोई कष्ट नहीं सहा है। अचानक हो गये मूर्ति के दर्शन से कैसा मजाक उडाया। हस्तिनाताड्यमानोऽपि न गच्छेज्जिनमंदिरम्। हाथी के पैरों के नीचे कुचलकर मर जाना कुबुल परन्तु महावीर के मंदिर की सीढ़ी पर पेर रखना मंजुर नहीं। किन्तु कमाल है वहि हरिभद्र साध्वीजी से और गुरूवर से शिक्षा पाकर जिन शासन के तेजस्वी सितारे बन गए और याकिनी महत्तरा सूनु कहलाये। धवलक नाम के श्रावक की टकोर से आचार्य रत्नाकर सूरि परिग्रहवृत्ति से बचे थे श्रेयः श्रिया मंगल केलिसद्म (मंदिर छो मुक्तितणा मांगल्य क्रीड़ाना प्रभु यह प्रसिद्ध स्तुति इसी का गुजराती अनुवाद है)। की स्वदुष्कृतगर्हागर्भित भाववाही स्तुति बनाई थी। समवसरण में कई आत्माएँ/जीव उपस्थित थे तब इन्द्र ने यह प्रश्न पूछा प्रभु इस सभा में से सबसे पहले मोक्ष में कौन जाएंगा? उस समवसरण में - 32 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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