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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर लिया कि मैं उनको डिगा दूंगा। मेरे सामने टिक सके वैसा समर्थ कौन है। क्षणभर में उन्हें तहस नहस कर दूंगा। उस दुष्ट संगम ने प्रभु को भयंकर से भयंकर कष्ट दिये एक रात्रि में बीस-बीस उपसर्ग किये। फिर भी प्रभु अडोल रहे। आखिर संगम थक गया, हार गया। जब संगम जाने लगा तो प्रभु की आंखों में करूणा के आँसू आ गये । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी म. ने सकलाऽर्हत् में प्रभु की उस समय की मनोभावना का सुन्दर विश्लेषण किया कृतापराधेऽपि जने, कृपामन्थरतारयोः ईषद्बास्पार्द्रयोर्भद्रं श्रीवीरजिननेत्रयोः॥२७॥ कई जीव मुझे पाकर सद्गति को पाते हैं। मेरे संपर्क/संग से वे पा जाते है परन्तु इस संगम का क्या होगा। बेचारा दुर्गति का मेहमान बनेगा और दुःखों को प्राप्त करेगा। इस तरह की भाव दशा से उनकी आंखों से करूणा के आंसू निकल पड़े थे। त्रिदंड़ि वेषधारक मरीचि की भगवान आदिनाथ ने निंदा नहीं की थी, परन्तु उनमें छीपे और भविष्य में प्रगट होने वाले महावीरत्व को जाहिर करके, भरतादि को आश्चर्य में डाल दिया था। भगवान की ऐसी आज्ञा नहीं है कि तुम पापियों का तिरस्कार करो । उनकी आज्ञा तो ये है। अगर पापी हमें हेरान-परेशान कर रह हो तब भी उनका तिरस्कार मत करो। पापी पालक को स्कंधकाचार्य के शिष्यों ने धिक्कारा नहीं था.... चमड़ी उखाड़/निकालने वालों के प्रति खंधक मुनि ने क्रोध / द्वेष नहीं किया था। सोमिल ससूर पर गजसुकुमाल मुनि ने द्वेष नहीं किया था। मेतारज मुनि ने सोनी को तिरस्कृत नहीं किया था। कुरगडु मुनि ने अभद्र व्यवहार करने वाले मुनियों का अपमान नहीं किया था। जिन्होनें भी पापी को नहीं धिक्कारा परन्तु उनकी संसार स्थिति का विचार किया उन्हें केवल ज्ञान का तोहफा मिला है। जिन्होंने सहन किया उन्हें क्या मिला? उन सबको केवल ज्ञान मिला | पापियों का तिरस्कार/ निंदा करने से क्या फायदा? क्या वो सुधर जायेंगे? अपनी निंदा से या अपने धिक्ककार से कभी कोई सुधर नहीं जाता है। तो क्या इन सब को देखते रहना? - 18 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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