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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - भूल हो जिससे वह इन्सान होता है। पाप न हो जिससे वह परमात्मा होते है। पाप हो जिससे वह इन्सान होता है। एक महिला को गाँव के लोग-लाठी और पत्थर आदि के प्रहार से मार डालना चाहते थे। क्योंकि उस स्त्री पर किसी व्यभिचार का आरोप था। इस कारण से लोग उसे मार डालना चाहते थे। वह स्त्री भाग रही थी अपनी जान बचाने के लिए। बचाओ...बचाओ.....बचाओं... की चीख उसके मुँह से निकल रही थी। सद्भाग्य से वह एक संत के चरणों में पहुंच गई और उस संत ने सिंह गर्जना करते हुए कहा- 'कौन इस महिला को मारना चाहता है? अगर इसे मारना है तो खुशी से मारें। इसे खत्म कर दें परन्तु इस स्त्री को वही मार सकता है, जिसने अपने जीवन में कोई पाप न किया हो। संत के शब्दों में इतना बल था-इतना वजन था कि सुनने वालों के हाथ-पाँव तो क्या हृदय काँप गये (उठे)। जो लोग इस स्त्री को मारना चाहते थे। जो लोग उस स्त्री को सजा देना चाहते थे। उनमें कोई बड़े-बड़े शेठ थे, कोई धर्मी कहे जाने वाले लोग, तो कोई बड़ी-बड़ी पगड़ी वाले भी थे, तो कोई सुटेड़-बुटेड़ भी थे। उनके हाथों से पत्थर नीचे गिर गये, क्योंकि उन्हें भी अपने-अपने पाप याद आ रहे थे। संत ने कहा था और पुरजोर शब्दों में कहा था। इस स्त्री को वही मारेगा जिसने कभी मन-वचन काया से व्यभिचार न किया हो। है कोई ऐसा जो इसे मार सके। सभी चूपचाप चले गये। मनुष्य जाति को संतों का एक ही उपदेश है, पाप का तिरस्कार करो। पाप का तिरस्कार करते-करते पापी का तिरस्कार न हो जाय उसकी सावधानी रखो। मक्खी उड़ाते-उड़ाते नाक ही न उड़ जाय उसका ध्यान रखना है। तीर्थकर परमात्माओं की जीवनी को पढ़ा होगा। सुना भी होगा। कहीं आपने पढ़ा और सुना कि उन्होनें कभी किसी पापी का तिरस्कार किया हो। गोशाला, जमाली, संगम जैसे पापियों का भी प्रभु ने तिरस्कार नहीं किया है। इन्द्र सभा में सौधर्मेन्द्र ने प्रभु वीर की बड़ी प्रशंसा की और प्रशंसा में कहा कि प्रभु मेरू की तरह बेडौल है उन्हें कोई डिगा नहीं सकता है। इन्द्र की प्रशंसा-संगम से बर्दास्त नहीं हुई। मन ही मन निश्चय - 17 - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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