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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org (28) साक्षात्कार्यं तत्त्वम् " आत्म तत्त्व का साक्षात्कार करना” टॉकीज में फिल्म बतालते समय अन्य सभी लाईटें बदं कर दी जाती है। उस समय पर्दे पर बाहर का प्रकाश पड़ता हो तो पर्दे पर ऊभरी आकृतियाँ मंद हो जाती है। इसी प्रकार आत्मा के मूलभूत स्वरूप को पहचानने के लिए बाहय दृष्टि को बंद करना पड़ता है। बाहय दृष्टि को बंद करे तो एकाग्रता व स्थिरता पूर्वक आत्मा के स्वभाव को जान पहचान सकते हैं। आत्मा को जानने के लिए बाहय - दुनिया पर से दृष्टि को हटाना अनिवार्य हैं, जब तक बाहय जगत् में दौड़ रहेगी, तब तक आत्मा की अंतरंग दुनिया से अज्ञात ही रहेंगे। जो व्यक्ति सागर से मोती प्राप्त करना चाहता है, वह यदि सागर के किनारे पर ही घूमता रहे या सागर की लहरों पर ही तैरता हुआ ही मोतियों को ढूंढ़ता रहे तो उसे कभी मोती नहीं मिल सकते । मोतियों की प्राप्ति के लिए उसे गोताखोर बनकर सागर की लहरों के साथ जूझते हुए उसके तल तक जाना पड़ेगा तभी वह मोतियों को प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति आत्मा को पाना चाहता है वह यदि सागर के किनारे घूमने की तरह या लहरों पर तैरने की तरह केवल बाहय जगत् व अपने शरीर पर ही ध्यान देता रहे तो वह कभी आत्मा को नहीं पा सकेगा। आत्मा को तो वह तभी पा सकेगा कि जब वह गोताखोर की तरह किनारों और लहरो को छोड़कर मन की या आत्मा की गहराई में गोते लगाए। सागर में ही नहीं हर मनुष्य के भीतर भी अमृत तत्त्व छिपा है किन्तु हम उस अमृत से अनजान है। जैसे देवों और दानवों ने समुद्र मन्थन के बाद अमृत प्राप्त किया था वैसे ही हम भी आत्म मन्थन के बाद अमृत पा सकते हैं। देखना ! मन्थन से घबराना मत, श्रमित बन इस कार्य को छोड़ मत देना । अपने अमृत तत्त्व को पाये बिना हम यूँ ही मर गए तो समझना कि मिट्टी में से पैदा हुए और मिट्टी ही रहे। अगर अमृत तत्त्व को पा लिया तो मिट्टी से पैदा होकर सुवर्ण बन गए। उस अमृत को पाने से पहले इन बातों को सदैव याद रखो । अरणि नामक काष्ठ के कण-कण में आग छिपी 214 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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