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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वत्र एव आगम: पुरस्कार्य: "सभी जगह आगम को आगे रखना" चक्षु के चार प्रकार है- (1) चर्म चक्षु (2) अवधि चक्षु (3) केवल चक्षु और (4) शास्त्र चक्षु। (1) चर्म चक्षु, चउरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय को मिली बाहय दर्शन की शक्ति, जिसकी प्राप्ति भी अति दुष्कर है, क्योंकि एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और तेइन्द्रिय अवस्था में चक्षु होते नहीं है। तो बाहय नेत्रों द्वारा दर्शन/देखने की शक्ति भी जीव के आत्म-प्रदेशों की ही शक्ति हैं। (2) अवधि चक्षु, पंचाचार पालन से मिली शक्ति, जिससे लोक के अनेक भागों का ज्ञान होता हैं। (3) केवल चक्षु, जिससे त्रिलोक की समस्त वस्तुओं के समस्त पर्यायों को देखने की शक्ति प्राप्त होती है। (4) शास्त्र चक्षु, केवली कथित साधनों को जानने का एक मात्र साधन है, शास्त्र। यह केवल ज्ञान का ही अंश हैं। केवली कथित वचनों को शास्त्र चक्षु द्वारा जान सकते है। सीमन्धर स्वामीजी के मुख से इन्द्र ने जो निगोद का सूक्ष्मस्वरूप जाना। वही सुक्ष्म-स्वरूप भरत क्षेत्र में रहे कालिकाचार्य के मुख से जानकर इन्द्र को आश्चर्य हुआ। अरिहन्त परमात्मा के समान निगोद के सूक्ष्म-स्वरूप का वर्णन कालिकाचार्य शास्त्र चक्षु के आधार पर ही बता सके थे। सूक्ष्म निगोद के जीव चौदह राजलोक के सम्पूर्ण क्षेत्र में ढूंस-ठूस कर भरे हुए है। देवों को अवधि ज्ञान की आंख होती है। सिद्धों को केवलज्ञान की आंख होती है। साधारण मुनष्यों को चमड़े की आंख होती है, परन्तु मुनियों को शास्त्र की आंख होती है। “साधवः शास्त्रचक्षुषः' | पुण्य, पाप, आत्मा, परमात्मा, इहलोक, परलोक, मोक्ष इत्यादि पदार्थों पर निर्णय कैसे करना? ये सभी अतीन्द्रिय पदार्थ है, जो चर्मचक्षु से दिखते नहीं है। अतीन्द्रिय पदार्थों का निर्णय हम जैसे For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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