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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org मन होगा। आप सुनने में उत्सुक हो इसलिए बोल रहा हैं न! हम कहते है सुनने में क्या पाप है, हम कहाँ किसी की निंदा कर रहे है? वह बोलता है हम क्या करे! कवि कालिदासजी ने कहा है, महापुरूषों की निंदा करने वाला ही नहीं सुनने वाला भी पापी है। जो गुण में, ज्ञान में, शक्ति में या अन्य बाबतों में भी आगे बढ़ा हुआ है वह दूसरों की निंदा क्यों करे? वह तो स्वनिर्माण में ही इतना डूबा रहता है कि निंदा के लिए उसके पास अवकाश ही नहीं रहता। सामान्यतया उदारचरित शक्तिशाली निंदा नहीं करते। निंदा तो अशक्ति की . निशानी है। निंदा ईर्ष्या की चिनगारी है, नीचता का चिन्ह है, निंदा वैचारिक हिंसा हैं। नीच लोग दूसरे की किर्तीरूप आग से जल उठते हैं, उनके स्थान पर, समकक्ष पहुँच नहीं पाते है इसीलिए निंदा का रास्ता अपनाते हैं । सारी दुनिया को अपना बनाना हो तो अपने हाथ की बात हैं। चाहे कैसे भी संयोग आ जाये, कैसी भी घटना हो जाये, दुसरे की निंदा मत करो। फिर देखो जग वश में होता है या नहीं, फिर कामण, टुमण, टोटके या वशीकरण की जरूरत नहीं है। कौन किसकी निंदा करता है? आप निरीक्षण करना, चोर कभी चोरी की निंदा नहीं करते, भ्रष्ट कभी भ्रष्टाचार की निन्दा नहीं करेंगे, मुर्ख कभी मुर्खता की निंदा नहीं करेंगे। जहां सभी नंगे हो वहां वस्त्र वाला ही निंदा पात्र बनेगा । सभी दुर्जन हो वहाँ सज्जन की निंदा होगी ही। आज हम यही देख रहे है। किसी ने सच ही कहा है! चोर चन्द्र की, नौकर गृहस्वामी की, कुशील सुशील की, असती सती की, अज्ञानी ज्ञानी की, गरीब धनवान की, निरक्षर साक्षर की, अकुलीन कुलीन की, युवा वृद्ध की, कुरूप रूपवान की और नीच श्रेष्ठ मनुष्य की निंदा करता हैं । दोष यानी मलिनता ! दोष यानी विष्ठा ! विष्ठा को कोई हाथ लगाता है? माँ जैसी माँ भी खुद के पुत्र की विष्ठा को हाथ नहीं लगाती । किन्तु कागज या ठिकरे में उठाती है, परन्तु इस निंदक की तो क्या बात करें, वह दुनिया भर की विष्ठा को खुद की जीभ से उठाता हैं । विष्ठा कौन उठाता है? ढेड़ भंगी, चांडाल जैसे लोग । ढेड़ भंगी या चांडाल होना किसी को अच्छा लगता है ? औरों की तो बात छोड़िये जो है उन्हे भी अच्छा नहीं लगता । इसीलिए तो हरिजन या अनुसूचित नाम दिये है। चांडाल चार प्रकार के कहे 10 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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