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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाय नहीं हैं परन्तु रोग में भी समाधि रखना अपने हाथ में है। एक रोग में रखी समाधि के कारण मात्र उस रोग का ही नहीं अनेक-अनेक कर्म रोगों का निकाल हो जाता है। यह फायदे का धंधा हैं। शरीर रोगग्रस्त रहे यह चिंतास्पद नही है परन्तु आत्मा रोगग्रस्त रहे यह चिंतास्पद है। यह शरीर कितना नाशवान है? दो रोटी ज्यादा खा ली जाय तो गैस हो जाता है और दो रोटी कम खाई जाये तो चक्कर आने लगते है। गर्मी से बी.पी. डाउन हो जाती है और ठंड लगे तो शरदी बढ़ जाती है। गुड़ खाने से गरमी करता है और शक्कर खाने से कफ का शिकार होना पड़ता है। नींद न आये तो बेचैनी लगती है और ज्यादा नींद ले तो आलसी बन जाते है। शरीर को सजाना सहलाना चलता रहता है, ठंडी में सालमपाक, मेथीपाक, गरमियों में आमरस, सुबह में मोर्निंगवॉक और शाम को इवनिंगवॉक, टहल, रोगनाशक दवाइयाँ और शक्तिवर्धक दवाइयाँ, साबून और क्रीम, टूथपेस्ट और पॉउडर, गेहने और कपड़े, तेल और मालिस, यह सब क्या है? हम शरीर के पीछे कितने पागल है इस बात का संकेत है। मल-मूत्र का संग्रह स्थान और पवित्र पदार्थों को भी अपवित्र करने के स्वभाव वाला यह शरीर इसकी एक ही श्रेष्ठता है कि यह शिवसुख प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है। आकाश में पहुँचने के लिए हवाई जहाज और हेलिकॉप्टर है। समंदर की सफर के लिए स्टीमर और सबमरीन है। जमीन की यात्रा के लिए बुलेट ट्रेइन, मेट्रो ट्रेइन और मोटर गाडी है। पर्वतारोहण करने के लिए रोप-वे और डोली है परंतु मोक्ष तक पहुँचने के लिए मानवदेह के शिवा दूसरा कोई साधन नहीं है। इसीलिए शास्त्रकारों ने भी इस शरीर की प्रशंसा की है। जिस जमीन पर संगेमरमर बिछा हो वह जमीन शायद रहने के लिए बैठने के लिये काम लग सकती है, परंतु खेतीबाड़ी के लिए बीज बोने योग्य नहीं गिनी जाती। जो जमीन दग्ध अर्थात् जली हुई हो उस जमीन में भी बीज नहीं बोये जाते, जो जमीन उखर होती है उसमें भी बीजों का वपन नहीं हो सकता। उसी जमीन में बीज बोये जाते है, वह उसके लिए योग्य है जो, फलद्रुम हो, नर्म हो, समतल हो, झाड़झंखाड से रहित हो। देवगति संगमरमर बिछे जमीन जैसी है। वहाँ सुख अपार है, सुख की सामग्रियाँ असीम 3 -146 - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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