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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार का एक भाग हैं शरीर भी परिवर्तित होता रहता है। जिस दिन हवा स्थिर रहेगी उस दिन शरीर की अवस्था भी स्थिर रहेगी। अतः जब तक शरीर ठीक हो, वहाँ तक धर्म साधना कर ही लेनी और जब शरीर खराब हो, तब समता-समाधि में रहना । यह शरीर गंदगी का घर है। देह में है क्या? मल, मूत्र जैसी अनके चीजें भरी है इसमें । यह शरीर अशुचि से भरा हुआ है। शरीर के नौ द्वारों से अशुचि का प्रवाह बह रहा है। लहसून को कस्तुरी के बीच भी रखा जाय तो भी वह सुगंधीत नहीं बन सकता, बस इसी प्रकार इस तन को सुंदर दिखाने के लिए कितने ही श्रृंगार किये जाय फिर भी यह देह अपनी अशुचि के स्वभाव का त्याग करने वाला नहीं है। बड़े नगरों/शहरों में अन्डर ग्राउन्ड गटर देखने को मिलते है। पाईप –लाईन के द्वारा सड़क के नीचे भयंकर गंदगी बहती है। जब, कहीं पाईप लाईन फुट जाती हैं, और उसकी गंदगी बाहर आती हैं, तब उसकी भयंकर गंदगी को सहन करना कठीन हो जाता है। सच, मानव देह की स्थिति भी उस गंदे नाले की भाँति है। मानव तन की चमड़ी, चाहे जितनी आकर्षक हो, परंतु उसके भीतर तो गंदगी ही बह रही है। गट्टर का ढक्कन खुलते ही जैसे बदबू आने लगती है, उसी तरह मानव देह की चमड़ी दूर होते ही उस देह में से गंदगी बाहर आती है। जैनों की तीर्थकर श्रृंखला में एक कड़ी हुई है मल्लिनाथ । वह एक राजकुमारी थी। भोग के परिवेश में जन्मी, पली, किन्तु निर्भोग और वीतभोग की लहरें उसके दिलों-दिमाग में लहरायीं थी। मल्लिकुमारी सुन्दर तो थी ही, उसके सौन्दर्य पर कई राजकुमार मोहित हो गए। छह राजकुमार तो मल्लिकुमारी से शादी करने के लिए राज्य सीमा में आ गए। हर राजा यह सोचकर अपने दल-बल सहित आया कि यदि प्रेम से मल्लिकुमारी मिल गई तो ठीक है, अन्यथा जबरन हथियाकर लाऊँगा । मल्लिकुमारी और उसके पिता के सामने बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई। उसके पिता के पास जितनी सैन्य ताकत थी। उससे दुगुनी चौगुनी ताकत शादी करने आए एक-एक राजा के पास थी। मल्लिकुमारी बुद्धिमती और दूरदर्शी थी। उसे पहले से ही हर स्थिति का भान हो गया था। अपने रूप पर मोहित बने हुए राजकुमारों को प्रतिबोध -142 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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