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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिन्त्यं देहादिवैरूप्यम् "देह आदि की विरूपता सोचनी" ज्ञानियों ने प्रत्येक पौद्गलिक चीजों को अनित्य कहा है। यह शरीर भी पौद्गलिक है। सड़ना, गलना, बनना, बिगड़ना उसका स्वभाव है। इस कारण से अकुलाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हर चीज अपने-अपने स्वभावानुसार बदलती रहती है। अनित्य-नाशवंत शरीर से नित्य, सुन्दर और हितकर धर्म करने में ही बुद्धिमत्ता है। यह औदारिक शरीर श्रेष्ठ और उदार धर्माराधना के लिए मिला है। दुनिया की एक भी चीज भरोसेमंद नहीं है, जिसका हम भरोसा कर सकें। कौन सी चीज कब धोखा दे दे कुछ कहा नहीं जा सकता । भरोसेमंद चीजों में प्रथम नंबर शरीर का है। वर्षों तक जिसको सम्हालकर सुरक्षित रखा गया शरीर कब रोगग्रसित होकर गिर जाय, कहा नहीं जा सकता है। शीशे के ग्लास की तरह नाजुक इस शरीर के भरोसे पे रहने से अच्छा है समय रहते जब तक शरीर है उतने समय तक धर्म ध्यान किया जाय । यह शरीर पाँच तत्त्वों का मिश्रण है। पंच महाभूतों से बना है यह शरीर । पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से निर्मित हुआ है। यह शरीर पाँच तत्त्व आकर मिले तब ही बन पाया है। सामान्यतया पानी, पृथ्वी, वायु, आकाश, अग्नि ये सब भिन्न-भिन्न नजर आते हैं। इसे जरा गहराई से समझें। स्त्रियाँ इसे जल्दि समझ पायेंगी। जब वे घर में रोटियाँ बनाती हैं तो क्या केवल सूखे आटे से रोटियाँ बन जाएँगी? आटे को पानी से गीला करना पड़ेगा, चकले पर बेलना होगा, गर्म तवे पर सेंकना होगा, तब जाकर रोटी बन पाएगी। यह शरीर भी कुछ ऐसा ही हैं। मिट्टी, पानी, हवा, अग्नि और आकाश के मेल का परिणाम ही तो शरीर है। शरीर माटी से आया है और माटी में चला जाएगा। मनुष्य की यह मूढ़ता है कि वह इस सत्य को जानते हुये भी देहासक्त बना रहता है। संसार का स्वभाव है सततपरिवर्तन, बदलते रहने का । संसारका अर्थ ही है निरंतर सरकना, एक अवस्था से दूसरी अवस्था में एक पर्याय से दूसरे पर्याय में बदलते रहने का। कोई चीज एक रूप में नहीं रहती। शरीर भी 141 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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