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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org इच्छानुसार धनादि की प्राप्ति हो जाए तो वह वैराग्य टिकता नहीं है। सिर मुंडन में तीन गुण, मिटे सिर की खाज । खाने को लड्डु मिले, लोग कहे महाराज ।। जो आजीविका अथवा बीमारी आदि से दुःखित हो कर विरक्त होता है और दीक्षा लेता है, उसका दुःख जब दूर हो जाता है, तब फिर वह संसार में जाने की इच्छा करता है। जैसे संग्राम में जाने वाला शुरवीर सैनिक अपनी सलामती की कोई चिंता नहीं करता। विजय या मौत दो ही विकल्प सामने रखकर शत्रु सेना पर टूट पड़ता है, परन्तु कितनेक कायर सैनिक युद्ध मैदान में जाने से पहले ही, वन, गुफा या गुप्त स्थल खोज लेते हैं । युद्ध में लड़ते हुए मौत सामने दिखे तब भगकर छिपने की कोई जगह तो चाहिए न? दुःख गर्भित वैराग्य वाले जीव के हृदय में उत्तम वैराग्य नहीं होता। इसके कारण वाद-विवाद करने के लिए वह तर्क शास्त्र शुष्क न्याय आदि विद्याएँ पढ़ता है, क्योंकि वाद विवाद में विजय बनने से जगत् में कीर्ति बढ़ती है। आजीविका के लिए कोई व्याकरण शास्त्रादि पढ़ता है, वैद्यक विद्या, ज्योतिष शास्त्र, तंत्र, मंत्र का प्रभाव डालकर अर्थप्राप्ति की इच्छा रखता है। टोटके और चमत्कार दिखाकर आत्म प्रशंसा कीर्ति और प्रतिष्ठा बटोरना चाहता है। आगम शास्त्रों में उसे जरा भी रस नहीं होता है। सचमुच दुःख गर्भित वैरागी व्यक्ति क्वचित् एकाध तात्त्विक ग्रन्थ का थोड़ा-थोड़ा ऊपर-ऊपर से ज्ञान प्राप्त भी कर लेता है तो वह फूल कर गुब्बारा हो जाएगा। थोडा सा पानी मिलते ही ड्राउ... ड्राउ... करने लगता है। मोहगर्भित वैराग्य कुशास्त्रों के अध्ययन से संसार की निःसारता निर्गुणता देखने / जानने से जो वैराग्य होता है, वह मोह गर्भित वैराग्य होता है अज्ञान तपस्वी / बालतपस्वी को होता है। जिनेश्वर भगवंत के द्वारा बतलाए हुए सत्य तत्त्वों का जिसे यथार्थ बोध नहीं हैं और असर्वज्ञ कथित स्वर्ग, नरक, मोक्ष आदि के मिथ्या स्वरूप को जानकर जो संसार से विरक्त बनता हैं, उसका वैराग्य मोह गर्भित कहलाता है। मोह गर्भित विरक्त आत्माएँ कुशास्त्रों में कुशल होती है और 123 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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